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द्वितीय अध्ययन : संघाट
( १८७)
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of whipping as well as hunger and thirst. I have no such urge like you. Beloved of gods ! you may go if you like.” विजय चोर को भोजन में हिस्सा
सूत्र ३०. तए णं धण्णे सत्थवाहे विजए णं तक्करेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से धण्णे सत्थवाहे मुहुत्तंतरस्स बलियतरागं उच्चारपासवणेणं उध्वाहिज्जमाणे विजयं तक्करं एवं वयासी-“एहि ताव विजया ! जाव अवक्कमामो।" ___ तए णं से विजए धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-“जइ णं तुम देवाणुप्पिया ! तओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेहि, ततो हं तुम्हेहिं सद्धिं एगंतं
अवकमामि।" __सूत्र ३0. विजय की यह उक्ति सुन धन्य सार्थवाह चुप रह गया। कुछ देर में उसकी शंका तीव्र हो गई तो उसने फिर विजय से कहा-“विजय ! चलो एकान्त में चलें।"
विजय ने इस बार कहा-“देवानुप्रिय ! यदि तुम अपने भोजन में से मुझे हिस्सा देना स्वीकार करो तो मैं तुम्हारे साथ एकान्त में चल सकता हूँ।" SHARING THE FOOD TO VIJAYA
30. This reply from Vijaya silenced Dhanya merchant. After some time when his urge intensified he again asked Vijaya, “Come Vijaya ! let us go to some secluded spot.”
This time Vijaya said, "Beloved of gods ! If you agree to share your food with me I am ready to go to a secluded spot with you."
सूत्र ३१. तए णं से धण्णे सत्यवाहे विजयं एवं वयासी-"अहं णं तुब्भं तओ विउलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करिस्सामि।"
तए णं से विजए धण्णस्स सत्थवाहस्स एयमद्वं पडिसणेइ। तए णं से विजए धण्णेणं सद्धिं एगते अवक्कमेइ, उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ, आयंते चोक्खे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ता णं विहरइ।
सूत्र ३१. धन्य सार्थवाह ने भोजन में से हिस्सा देना स्वीकार कर लिया। विजय ने उसकी बात मान ली और उसके साथ एकान्त स्थल पर चला गया। धन्य सार्थवाह शंकामुक्त हो हाथ-मुँह धोकर स्वच्छ हुआ और दोनों वापस अपने स्थान पर लौट आये।
31. Dhanya merchant agreed to share his food. Vijaya thief now accepted Dhanya merchant's request and accompanied him to a
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CHAPTER-2 : SANGHAT
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