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द्वितीय अध्ययन : संघाट
(१८५)
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पडिनिक्खमित्ता रायगिहे नगरे मझमझेणं जेणेव चारगसाला, जेणेव धन्ने सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता भोयणपिडयं ठावेइ, ठावेत्ता उल्लंछइ, उल्लंछित्ता भायणाइं गेण्हइ। गेण्हित्ता भायणाई धोवेइ, धोवित्ता हत्थसोयं दलयइ, दलइत्ता धण्णं सत्थवाहं तेणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं परिवेसेइ। ___ सूत्र २६. पंथक ने प्रसन्नचित्त हो उस छबड़ी तथा घड़े को उठा लिया और घर से निकल राजमार्ग पर होता हुआ कारागार में धन्य सार्थवाह के पास गया। वहाँ पहुँचकर उसने वह छबड़ी नीचे रखी, उस पर से मोहर हटाई, भोजन के पात्रों को धोया, धन्य सार्थवाह के हाथ धुलाये और भोजन परोस दिया।
26. Panthak happily picked up the basket and the pitcher and walking on the highway went to Dhanya merchant in the prison. He put down the basket on the floor, broke the seal, washed the utensils, helped Dhanya merchant wash his hands, and served the food. विजय की क्षुधा
सूत्र २७. तए णं से विजए तक्करे धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-“तुमं णं देवाणुप्पिया ! मम एयाओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेहि।"
तए णं से धण्णे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी-"अवियाइं अहं विजया ! एयं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं कायाणं वा सुणगाणं वा दलएज्जा, उक्कुरुडियाए वा णं छड्डेज्जा, नो चेव णं तव पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडिणीयस्स पच्चामित्तस्स एत्तो विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेज्जामि।"
सूत्र २७. यह सब देख विजय चोर ने धन्य से कहा-“हे देवानुप्रिय ! मुझे भी इस ढेर से भोजन में से कुछ दो।" ___ धन्य सार्थवाह ने उत्तर दिया-“हे विजय ! भले ही इतनी सारी भोजन सामग्री मुझे कौवों और कुत्तों को देनी पड़े या फिर कूड़े में फेंकनी पड़े पर तेरे जैसे पुत्रघातक, शत्रु, अनाचारी और प्रतिकूल व्यक्ति को इसमें से हिस्सा नहीं दूंगा।"
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VIJAYA'S DESIRE FOR FOOD
27. Seeing all this, Vijaya thief said to Dhanya merchant, “Beloved of gods! Out of this large quantity of food please give a little to me as well.” Dhanya merchant replied, “Vijaya ! I would prefer to feed cravens and dogs or throw all the extra food in a dustbin rather then
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CHAPTER-2 : SANGHAT
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