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प्रथम अध्ययन: उत्क्षिप्त ज्ञात
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157. During that period of time moving from one village to another Shraman Bhagavan Mahavir, the propagator of religion and the founder of the religious ford, arrived in Rajagriha and stayed in the Gunashil temple. समाधिमरण का संकल्प
सूत्र १५८. तए णं तस्स मेहस्स अणगारस्स राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव (चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे) समुप्पज्जित्था-“एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं तहेव जाव भासं भासिस्सामि त्ति गिलामि, तं अस्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा धिई संवेगे तं जाव ता मे अस्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा धिई संवेगे जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, ताव ताव मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलंते सूरे समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुनायस्स समाणस्स सयमेव पंच महव्वयाई आरुहित्ता गोयमाइए समणे निग्गंथे निग्गंथीओ य खामेत्ता तहारूवेहिं कडाईहिं थेरेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं सणियं सणियं दुरूहित्ता सयमेव मेहघणसनिगासं पुढविसिलापट्टय पडिलेहित्ता संलेहणाझूसणाए झूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए।'' |
सूत्र १५८. उस समय मेघ अनगार के मन में रात को धर्म जागरण करते समय मध्य रात्रि को यह विचार उठा-"मैं इस तपस्या के कारण दुर्बल हो गया हूँ (विस्तृत विवरण पूर्व सम)। फिर भी अभी मुझमें उठने की शक्ति, बल, वीर्य, पौरुष, पराक्रम, श्रद्धा, धृति
और संवेग है। अतः जब तक मुझमें ये सब शेष हैं और मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, गंधहस्ति के समान जिनेश्वर श्रमण भगवान महावीर विद्यमान हैं तब तक मुझे जीवन के अन्तिम कर्तव्य पूरे कर लेने चाहिये। इस रात्रि के बीत जाने पर जब सूर्योदय हो तो मैं भगवान महावीर को यथाविधि वन्दना कर, उनकी आज्ञा ले, स्वयं ही पाँच महाव्रतों को पुनः अंगीकार करूँ; गौतम आदि श्रमणों तथा श्रमणियों से क्षमायाचना करूँ; वैसे ही क्रियाओं में पारंगत स्थविर श्रमणों के साथ धीरे-धीरे विपुलाचल पर चढूँ, मेघ के समान काले शिलाखण्ड का प्रतिलेखन करूँ; और अन्ततः संलेखना स्वीकार कर, आहार-पानी का त्याग कर पादोपगमन अनशन धारण करूँ और मृत्यु की आकांक्षारहित हो ध्यानमग्न हो जाऊँ।"
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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