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मूल पाठ में वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक अंशों को अनेकानेक बार दोहराए जाने की शैली का प्रयोग - हुआ है। अनुवाद में इन्हें यथासंभव संक्षिप्त किया है तथा 'पूर्वसम' आदि इंगितों का प्रयोग किया गया है। चित्रों को अधिक सुगमता से बोधगम्य बनाने के लिए चित्र-शीर्षक के स्थान पर प्रत्येक चित्र के पीछे तत्संबंधित कथा प्रसंग संक्षेप में दिया गया है।
अध्ययन के अन्त में विशेष शब्दों का स्पष्टीकरण एवं उपसंहार तथा टीका में आई हुई उपनय गाथाएँ भी ले ली हैं। इस प्रकार सम्पादन में सर्वांगता लाने का प्रयास किया है। टिप्पण एवं परिशिष्ट की शैली मुझे कम पसन्द है, क्योंकि उससे पाठक को इधर-उधर पृष्ठ उलटने पड़ते हैं। अतः प्रत्येक अध्ययन से सम्बन्धित सभी सामग्री वहीं एक स्थान पर देने का प्रयास किया है। आशा है पाठकों को यह शैली अधिक सुन्दर व रुचिकर लगेगी। कृतज्ञता प्रदर्शन ___ परम पूज्य गुरुदेव उ. भा. प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज के असीम आशीर्वाद से सचित्र आगम प्रकाशन का यह कार्यक्रम निर्विघ्न रूप से गति पकड़ रहा है यह मेरे लिए परम प्रसन्नता का विषय है। इस प्रकाशन में महासती जी तपचक्रेश्वरी उपप्रवर्तिनी श्री मोहनमाला जी म., उपप्रवर्तिनी डॉ. सरिता जी म. तथा अनेक गुरुभक्त उदार सद्गृहस्थों ने अपना सहयोग करके गुरुभक्ति और श्रुतभक्ति का परिचय दिया है। साथ ही शास्त्र-सेवा का पुण्य उपार्जन किया है। यह सभी के लिए अनुकरणीय है।
साहित्यकार श्रीचन्द जी सुराना ने सदा की भाँति इसके सम्पादन, मुद्रण में अपनी सम्पूर्ण बौद्धिक-चेतना को नियोजित किया है तथा श्रीयुत सुरेन्द्र जी बोथरा ने सुन्दर सटीक अंग्रेजी अनुवाद के साथ संपादन सहयोग करके इसकी उपयोगिता में चार चाँद लगाये हैं। मैं सभी के प्रति हार्दिक भाव से कृतज्ञ हूँ।
-अमर मुनि
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