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चित्र परिचय:४
Illustration No. 4
वमन किया मत पीओ DO NOT DRINK WHAT YOU HAVE VOMITED पक्खंदे जलियं जोइं-(नीचे का दृश्य) गुफा के एकान्त में सती राजीमती के रूप-लावण्य को देखकर मुनि रथनेमि का चित्त चंचल हो उठा। उनके मोह भरे वचन सुनते ही सती राजीमती ने अपनी भीगी शाटिका शरीर पर लपेट ली और सिकुड़कर बैठ गई।
(below) Alone in the cave, when ascetic Rathnemi saw the beauty of Sati Rajimati he was filled with lust. At his lewd invitation, Rajimati covered her body in her robe and squeezed into a corner.
फिर वह उदाहरण देकर समझाती है-(ऊपर का दृश्य) “सर्प दो प्रकार के होते हैं, एक गंधन कुल में जन्मा, जो अपने द्वारा काटे हुए को मंत्र द्वारा बुलाये जाने पर आकर वापस उसका जहर चूस लेता है और दूसरा अगंधन कुल का सर्प, जो मंत्रवादी द्वारा आकर्षित करने पर आता तो है, परन्तु अपना उगला हुआ विष वापस चूसने से साफ इन्कार कर देता है। मंत्रवादी कहता है-या तो अपना विष वापस पी अथवा जलती हुई अग्नि में भस्म होना पड़ेगा। तो अगंधन कुल का सर्प अग्नि में जलकर भस्म होना स्वीकार कर लेता है, परन्तु वमन किया विष वापस नहीं पीता।
Giving an example she tries to rid him of his lust—(above) There are two types of snakes. One sucks back its venom from the body of its victim when summoned with the help of mantra. It is of the Gandhan species. The other type, belonging to the Agandhan species, approaches under the influence of the mantra but refuses to suck back the venom. When the Mantra-chanter threatens to throw it into fire, it prefers to turn into ashes rather than to suck back the vomited venom.
राजीमती का उद्बोधन-इसी प्रकार तुम त्याग किए हुए भोगों को वापस भोगने की इच्छा मत करो, भले ही मृत्यु का वरण करना पड़े।
(अध्ययन २, श्लोक ६-१०) The inspiration given by Rajimati—In the same way you should not desire to indulge in pleasures you have abandoned even when you are left with no alternative but death.
(Chapter 2, verses 6-10)
/pram
(Ayusum
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