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बुद्धिमान् साधु की पहचान
४४ : तवं कुव्वइ मेहावी पणीअं वज्जए रसं।
मज्जप्पमायविरओ तवस्सी अइउक्कसो॥ ज्ञानवान और बुद्धिमान साधु वही है, जो सदा तप की आराधना करता है, काम उत्पन्न करने वाले स्निग्ध भोजन का त्याग करता है और मद्य-पान के प्रमाद से भी सर्वथा विमुख रहता है। वह कभी अपने तप आदि गुणों पर गर्व नहीं करता है॥४४॥ THE RECOGNITION OF AN ASCETIC
44. Only he is a learned and wise ascetic who always practices austerities, abandons lust producing rich food and rejects the habit forming consumption of alcohol. He is never conceited about his virtues.
४५ : तस्स पस्सह कल्लाणं अणेगसाहुपूइअं।
विउलं अत्थसंजुत्तं कित्तइस्सं सुणेह मे॥ ___ गुरु कहते हैं-हे शिष्यो ! तुम उस साधु के कल्याणकारी संयम को देखो जो अनेक साधुओं से पूजित है, कल्याण मोक्ष को प्राप्त करने वाला है तथा मोक्षमार्ग का साधक है। मैं स्वयं उसके गुणों का कीर्तन करूँगा, इसलिए तुम सावधान होकर मुझसे सुनो॥४५॥ ___45. The guru states-0 disciples! You should observe the beneficent discipline of the shraman who is revered by many ascetics, pursuing the path of liberation and destined to attain that bliss. I am going to praise his virtues, so you should listen attentively.
४६ : एवं तु स गुणप्पेही अगुणाणं च विवज्जए।
तारिसो मरणंते वि आराहेइ संवरं॥ पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (द्वितीय उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (2nd Section) १८७
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