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Minimum
AMITRAK
ELABORATION:
(29) Asanjamakarim—undisciplined. The discipline required while giving food has been explained above in brief. Stressing its importance, Acharya Shri Atmaram ji M. says—“If an ascetic accepts food from such an undisciplined woman he commits the faults of becoming undisciplined himself and that of approving indiscipline."
३० : साहट्ट निक्खिवित्ताणं सचित्तं घट्टियाणि य।
तहेव समणट्ठाए उदगं संपणुल्लिया॥ ३१ : ओगाहइत्ता चलइत्ता आहरे पाणभोयणं।
दितिअं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥ इसी तरह कोई दाता-स्त्री साधु के लिए एक पात्र से दूसरे पात्र में डालकर, सचित्त और अचित्त को मिलाकर, अचित्त के ऊपर सचित्त को रखकर, अचित्त से सचित्त को छुआकर अथवा रगड़कर, जल को चलाकर अथवा जल में चलकर आहार-पानी दे तो साधु उससे कहे कि मुझे यह ग्राह्य नहीं है॥३०-३१॥
30, 31. Further, if a donor woman transfers food from one pot to another, mixes sachit with achit, places achit over sachit, touches or rubs achit with sachit, stirs water or walks over water before or while bringing food to an ascetic, he should say that it is not allowed for him to accept such food. विशेषार्थ : ___ श्लोक ३०, ३१. साहटु-संहृत्य-समेटकर अथवा बड़े बर्तन से छोटे में निकालकर अथवा एक बर्तन से दूसरे में निकालकर। ऐसा करने से अचित्त अथवा प्रासुक को सचित्त में मिलाना हो जाता है। अतः ऐसा आहार लेना निषिद्ध है। विशेष वर्णन पिण्डनियुक्ति में उपलब्ध है। ___ उदंग संपणुल्लिया-जल को हिलाकर। यहाँ जल को हिलाकर, चलाकर और उस पर चलकर भोजन दिया जाये उसे निषिद्ध बताया है। जल में प्रत्येक सचित्त वस्तु का समावेश है। यह सभी एषणा के विविध दोष हैं।
पंचम अध्ययन :पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter: Pindaishana (Ist Section)
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