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Bhante! I have now taken the fourth great-vow in which one completely abstains from sexual intercourse.
१५. अहावरे पंचमे भंते ! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं। __सव्वं भंते ! परिग्गहं पच्चक्खामि। से गामे वा नगरे वा रण्णे वा' अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा, नेव सयं परिग्गहं परिगेण्हिज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगिण्हावेज्जा परिग्गहं परिगिण्हते वि अन्ने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि।
तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। पंचमे भंते ! महव्वए उवडिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं। भन्ते ! इसके पश्चात् पाँचवें महाव्रत में परिग्रह की विरति होती है।
भन्ते ! मैं सर्व परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ। गाँव में, नगर में या अरण्य में, अल्प या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त किसी भी परिग्रह का ग्रहण स्वयं नहीं करूँगा, अन्य द्वारा परिग्रह का ग्रहण नहीं करवाऊँगा और परिग्रह ग्रहण करने वालों का अनुमोदन नहीं करूंगा। मैं समस्त जीवन पर्यन्त तीन करण
और तीन योग से इसका पालन करूँगा। अर्थात् मैं जीवन पर्यन्त परिग्रह ग्रहण मन, वचन, काया से न करूँगा, न कराऊँगा, न करने वाले का अनुमोदन करूँगा।
भन्ते ! मैं अतीत में किये परिग्रह का प्रतिक्रमण करता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, उसकी गर्दा करता हूँ और आत्मा द्वारा वैसी प्रवृत्ति का त्याग करता
___ भन्ते ! मैं पाँचवें महाव्रत में उपस्थित हुआ हूँ। इसमें सर्व परिग्रह की विरति होती है॥१५॥ ___15. Bhante! After this, the fifth great-vow is abstinence from keeping any possession. १. कुछ प्रतियों में यह पाठ अधिक है।
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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GODITURA
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