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________________ तत्थ णं एगे संघाडए बारवईए णयरीए उच्च-णीय मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए गिहं अणुप्पविठे । तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासित्ता हट्ठ-तुट्ठ चित्तमाणंदिया, पीईमणा परमसोमणस्सिया, हरिसवस- विसप्पमाणहियया आसणाओ अब्भुठेइ, अब्भुत्तिा सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता बंदइ, णमंसइ । वंदित्ता, णमंसित्ता जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहकेसराणं मोयगाणं थालं भरेइ, भरित्ता ते अणगारे पडिलाभेइ पडिलाभित्ता बंदइ, णमंसइ । वंदित्ता णमंसित्ता पडिविसज्जेइ । छह अणगार : देवकी के भवन में सूत्र ९ : उसके पश्चात् उन छहों मुनियों ने अन्यदा किसी समय, बेले की तपस्या के पारणे के दिन प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया और गौतम स्वामी के समान प्रभु के समक्ष उपस्थित होकर बोलेहे भगवन् ! हम बेले की तपस्या के पारणे में आपकी आज्ञा पाकर दो-दो के तीन संघाडों से द्वारका नगरी में यावत् भिक्षा हेतु भ्रमण करना चाहते भगवान ने कहा-देवानुप्रियो ! जैसे सुख हो, वैसा करो । तब उन छहों मुनियों ने अरिहंत अरिष्टनेमि की आज्ञा पाकर प्रभु को वन्दन नमस्कार किया । वन्दन नमस्कार करके वे भगवान अरिष्टनेमि के पास से सहस्राम्रवन उद्यान से प्रस्थान करते हैं । उद्यान से निकल करके वे दो-दो के तीन संघाटकों में सहज मन्द-मन्द गति से, शान्त चित्त से ईर्यासमिति पूर्वक भ्रमण करने लगे । अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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