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________________ these learned fourteen Pūrvas. All these became emancipated by sailekhanā-Sarthārā at mountain Śatrunjaya. (2 to 6 Chapters concluded) सातवां अध्ययन जइ णं भंते ! उक्वेवो सत्तमस्स ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए णयरीए जहा पढमे । णवरं वसुदेवे राया, धारिणी देवी, सीहो सुमिणे, सारणे कुमारे, पण्णासओ दाओ, चोद्दसपुव्वाइं वीसं वासाइं परियाओ; सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे । (इति सत्तमज्झयणं) सूत्र ६ : आर्य जम्बू-हे पूज्य ! श्रमण भगवान महावीर ने छठे अध्ययन का जो भाव (उत्क्षेपक-जिसका अर्थ है-वर्णन, अधिकार या भाव है) कहा, वह सुना, अव सातवें अध्ययन का क्या उत्क्षेपक अधिकार है ? कृपा कर फरमाइये । आर्य सुधर्मा-उस काल उस समय में द्वारका नगरी थी । वहां का वर्णन प्रथम अध्ययन के समान समझना चाहिए । विशेष-वहां वसुदेव राजा थे, और धारिणी देवी उनकी रानी थी । देवी ने सिंह का स्वप्न देखा । उनके पुत्र का नाम सारण कुमार रखा गया । उसे विवाह में पचास-पचास स्वर्ण-रजत कोटि का प्रीतिदान मिला । सारण कुमार ने सामायिक आदि ग्यारह अंगों तथा १४ पूर्वो का अध्ययन किया । बीस वर्ष तक दीक्षा पर्याय का पालन किया । शेष गौतम कुमार की तरह शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना सहित सिद्ध हुए । (सातवां अध्ययन समाप्त) २-७अध्ययन . ५१ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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