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________________ तृतीय वर्ग सूत्र १ जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स दोच्चस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं तेरस अज्झयणा पण्णत्ता । तं जहा१. अणीयसेणे, २. अणंतसेणे, ३. अजियसेणे, ४. अणिहयरिऊ, ५. देवसेणे, ६. सत्तुसेणे, ७. सारणे, ८. गए, ९. सुमुहे, १0. दुम्मुहे , ११ कूवए, १२ दारुए, १३ अणादिट्ठी ।। जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता । तं जहा-अणीयसेणे जाव अणादिट्ठी। पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? सूत्र १: आर्य जम्बू-हे भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर प्रभु ने आठवें अंग अन्तकद्दशा के दूसरे. वर्ग का जो भाव कहा, वह मैंने सुना । अब हे भगवन ! तीसरे वर्ग का श्रमण भगवान महावीर प्रभु ने क्या भाव कहा है ? सुधर्मा स्वामी-हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा सूत्र के तीसरे वर्ग में तेरह अध्ययनों का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-- अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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