SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। यदि वे अपने गुरु के समक्ष जिज्ञासा प्रगट न करते तो शायद इस अंग का निर्माण न होता और हम तक न पहुँचता। ___ जम्बू स्वामी ज्योति-पुँज थे, ज्ञान-पिपासु थे, गुरु प्रदत्त द्वादशांगी तथा चौदह पूर्वो के ज्ञान-समरन श्रुत को पी गए, पचा गये। अपनी मेधा में उस विशाल ज्ञान संसार को रत्नमंजूषा के समान सुक्षित कर लिया। ऐसे मेधावी जम्बू स्वामी का जन्म राजगृह नगर में एक अति धनाढ्य वैश्य परिवार में, भगवान महावीर के निर्वाण से १६ वर्ष पूर्व (विक्रम पूर्व ४८६, ई. सन् ५११) में हुआ। इनके पिता का नाम श्रेष्ठी ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी था। माता द्वारा स्वप्न में जम्बू-वृक्ष देखने अथवा जंबू द्वीपाधिपति देव की १०८ आयंबिल तप द्वारा आराधना के कारण इनका नाम जम्बूकुमार रखा गया। वे क्रमशः आयु के सोपान चढ़ते हुए सोलह वर्ष के और साथ ही समस्त पुरुषोचित कलाओं और विद्याओं में निपुण हो गए। पुत्र को सभी प्रकार योग्य देखकर माता-पिता ने इनका संबंध आठ श्रेष्ठि-कन्याओं के साथ निश्चित कर दिया। उसी अवसर पर गणधर सुधर्मा स्वामी अपने ५00 शिष्यों सहित गजगृह पधारे । सोलह वर्षीय युवक जम्बू ने उनका धर्मोपदेश सुना तो उसका हृदय वैराग्य से भर गया। घर आकर माता-पिता को श्रमण-दीक्षा लेने का निर्णय बताया तो माता-पिता वहुत निराश हुए। भाँति-भाँति से समझाया लेकिन जब जम्बू अविलित रहे तो अन्त में माता-पिता ने कहा___हम आठ श्रेष्ठियों को तुम्हारे विवाह का वचन दे चुके हैं। हमारे वचन की लाज रखकर विवाह तो अवश्य ही कर लो।" जम्बूकुमार ने कहा "आपके वचन की रक्षा करने को मैं तैयार हूँ, लेकिन पहले आप उन श्रेष्ठियों को मेरे दीक्षा-निर्णय की सूचना अवश्य दे दें। यदि वे कन्याएँ तथा माता-पिता फिर भी विवाह के लिए तत्पर हों तो मुझे कोई ऐतराज नहीं; किन्तु विवाह के दूसरे दिन मैं दीक्षा अवश्य ले लूँगा।" माता-पिता और विशेष रूप से माता ने मन में सोचा-कामिनी के स्नेह-जाल में उलझकर कौन निकला है ? जम्बू भी उलझ जायेगा।' जम्बूकुमार की दीक्षा ग्रहण करने की सूचना कन्याओं के माता-पिताओं को भेज दी गई। उन सब की चिन्तनधारा जम्बूकुमार की माता के समान ही प्रवाहित हुई और शुभ लग्न में आठ श्रेष्टि-कन्याओं का विवाह जम्बूकुमार के साथ हो गया। ९९ करोड़ सोनैया का दहेज मिला। दहेज से श्रेष्ठि का घर भर गया। उस समय राजगृह की पहाड़ियों में प्रभव नाम का एक दुर्द्धर्ष तस्कर था। उसके ५00 साथी तस्कर थे। प्रभव के पास दो विशेष विद्याएँ थीं-(१) अवस्वापिनी-लोगों को निद्राधीन करने वाली, और (२) तालोद्घाटिनी-ताले खोलने वाली। इन दो विद्याओं के प्रभाव से प्रभव राजगृह नगर में सफलतापूर्वक चोरियाँ करता था और कभी पकड़ा नहीं जाता था। .४३४ अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy