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________________ वर्तमान में इसकी अवस्थिति विवादित और अनिश्चित है। मुनि श्री कल्याणविजय जी लछुआड से पूर्व में जो काकन्दी तीर्थ है, उसे प्राचीन काकन्दी नगरी नहीं मानते अपितु उनकी धारणा है कि दिगम्बर जैनों का किष्किंधा तीर्थ ही प्राचीन काकन्दी नगरी होना चाहिए। लेकिन इस नगरी की अवस्थिति के विषय में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता; क्योंकि उस समय के अनेक नगर विनष्ट हो गये हैं। काकन्दी की भी यही स्थिति है। पोलासपुर __ अन्तकृद्दशासूत्र में पोलासपुर नगर का उल्लेख हुआ है। नगर में श्रीवन नाम का उद्यान था। वहाँ राजा विजय राज्य करते थे। उनकी महारानी का नाम श्रीदेवी था। राजकुमार अतिमुक्तक ने वालवय में भगवान महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की और मुक्ति प्राप्त की। भद्दिलपुर __ भद्दिलपुर उस समय एक समृद्ध नगरी थी। यह तत्कालीन मलय देश की राजधानी थी और इसकी गणना अतिशय क्षेत्रों में की जाती थी। अन्तकृद्दशासूत्र में उल्लिखित भहिलपुर नगरी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हरिणगमैषी देव देवकी के जीवित पुत्रों को भद्दिलपुर निवासी नाग गाथापति की पत्नी सुलसा को दे देता है और सुलसा के मृत पुत्रों को देवकी के पार्श्व में रख देता है। इस तरह वह छह शिशुओं की अदला-बदली करता है। - यह नगरी कहाँ अवस्थित थी, इस विषय में विभिन्न विचारकों के भिन्न मत हैं। मुनि कल्याणविजय जी का मत है कि आधुनिक पटना से दक्षिण में १00 मील दूर और गया से नैऋत्य कोण में २८ मील दूर, गया जिले में हररिया और दन्तारा गाँव हैं; उनके पास भद्दिलपुर नगरी थी। डॉ. जगदीशचन्द्र जैन हजारीगाँव जिले में भदिया नामक गाँव को प्राचीन भहिलपुर मानते हैं। इन दोनों विद्वानों की मान्यताओं का आधार यह है कि भगवान महावीर ने एक चातुर्मास भहिलपुर में किया था। किन्तु यहाँ एक प्रश्न उठता है कि क्या भगवान अरिष्टनेमि के युग में भी यही भद्दिलपुर नगरी थी जो भगवान महावीर के युग में थी; क्योंकि दोनों तीर्थंकरों के मध्यवर्ती काल में समय का बहुत लम्बा अन्तर रहा है। भगवान अरिष्टनेमि एक लाख वर्ष पहले हुए हैं और भगवान महावीर २५00 वर्ष पहले। अन्तकृद्दशासूत्र में भगवान अरिष्टनेमि के युग के भद्दिलपुर नगर का उल्लेख आया है। इन सब बातों का विचार करके भद्दिलपुर नगर की अवस्थिति निर्धारित की जानी चाहिए। राजगृह राजगृह अति प्राचीनकाल से ही समृद्ध और प्रसिद्ध नगरी रही है। इसकी प्राचीनता के जैनशास्त्रों में कई प्रमाण मिलते हैं। बीसवें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत का जन्म यहीं हुआ था। इन्हीं के शासनकाल में रामायण की घटना हुई थी। महाभारत काल में प्रतिवासुदेव जरासन्ध .४२० . अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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