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________________ चीनी यात्री फाह्यान ने चम्पा को पाटलिपुत्र (पटना) से १८ योजन पूर्व दिशा में गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित बताया है। मुनि कल्याणविजय जी का विचार है कि यह चम्पा पटना से पूर्व दिशा-कुछ दक्षिण की ओर लगभग १00 कोस पर थी। आजकल इसका नाम चम्पानाला है तथा यह भागलपुर से ३ मील दूर पश्चिम में है। कनिंघम ने कहा है-भागलपुर से ठीक २४ मील पर पत्थर घाट है। इसके पास ही पश्चिम दिशा की ओर चंपानगर नाम का एक बड़ा गाँव है और एक छोटा गाँव है जिसे चंपापुर कहा जाता है। उपर्युक्त विद्वानों के विचारों से यह निष्कर्ष निकाला जाना सहज संभव है कि उपरोक्त दोनों गाँव प्राचीनकाल की समृद्ध चम्पा नगरी के द्योतक अवशेष हैं और चम्पा नगरी यहीं अवस्थित थी। पूर्णभद्र चैत्य यह चैत्य चम्पानगरी के बाहर ईशानकोण (उत्तर-पूर्व दिशा का मध्य भाग) में अवस्थित था। इसमें पूर्णभद्र नाम के यक्ष की प्रतिमा थी। यह यक्षायतन था। यक्ष के नाम पर ही यह पूर्णभद्र चैत्य कहलाता था। यक्षायतन की दीवारें चित्रों से अलंकृत थीं। यह काफी पुराना था। नगरवासी इसकी प्रशंसा करते थे। यह अपने प्रभाव से विख्यात था। न्यायशील था-लौकिक श्रद्धा वाले नागरिक वहाँ आकर न्याय प्राप्त करते थे। वह छत्र-पताका आदि से युक्त था। उसकी दीवारें गोरोचन तथा चन्दन की हथेलियों की छाप से युक्त थीं। मंगल-कलश रखे थे, ताजे पुष्यों के ढेर लगे रहते थे, अगर-कपूर आदि की सुगन्ध से महकता रहता था। लोग उसका सम्मान, पूजा आदि करते और विभिन्न प्रकार की भेंट चढ़ाते थे। इन सब के कारण वह बहुत रमणीय प्रतीत होता था। चैत्य शब्द का स्पष्टीकरण-चैत्य शब्द के अनेक अर्थ हैं जैसे-ज्ञान (तिक्खुत्तो सूत्र में चेइयं शब्द), भगवान, माननीय मानव, गुणग्राही, वृक्षमूल, समाधि-स्थल, देव इत्यादि। अधिकांशतः चैत्य शब्द को चिता से संबंधित माना जाता है। प्राचीनकाल में परम्परा थी कि विशिष्ट पुरुष का जहाँ अग्नि-संस्कार किया जाता था, वहाँ उसकी स्मृतिस्वरूप एक वृक्ष आरोपित कर दिया जाता था, वह चैत्य-वृक्ष कहलाता था। __ फिर समाधि-स्थल बनने लगे। साँची का सारनाथ स्तूप इसका प्रमाण है। समाधि-स्थलों की परम्परा अब भी चल रही है। किन्तु प्रस्तुत प्रसंग में चैत्य शब्द का अर्थ देव (यक्ष) अधिक संगत प्रतीत होता है और चैत्यायतन का अर्थ लौकिक देवता का मन्दिर। शास्त्रों में अनेक स्थानों पर चैत्यायतनों का वर्णन मिलता है, जहाँ तपस्वी ध्यान-साधना करते थे। भगवान महावीर ने भी अनेक चैत्यों में साधना की थी। प्रस्तुत प्रसंग में पूर्णभद्र चैत्य का महत्त्व यह है कि यहाँ गणधर सुधर्मा ने आर्य जम्बू को आठवें अंग की वाचना दी थी। अन्तकृद्दशा महिमा ४१७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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