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________________ वहाँ अवस्थित होकर दोनों पैगं को संकुचित करता है. भुजाओं को जंघापर्यन्त लम्बी करता है. इस मुद्रा में खड़ा होता है। फिर शरीर को थोड़ा आगे झुकाकर एक पुद्गल पर दृष्टि जमा देता है. निमिष दृष्टि से अपलक देखता हुआ समस्त इन्द्रियों और मन को ध्येय में लीन करके एकाग्रचित्त में ध्यान-साधना में तल्लीन हो जाता है। इस प्रकार साधना करते हुए संपूर्ण गत्रि व्यतीत करता है। यदि इस प्रतिमा का पालन जिनेश्वर की आज्ञा के अनुरूप सही ढंग से न हो सके, साधक उपसर्गपरीषह से विचलित हो जाय तो उसे तीन अनर्थकारी दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं (१) मानसिक उन्माद, पागलपन, विक्षिप्नना। (२) अति दीर्घकालीन गेग और आतंक। (३) केवली प्रज्ञप्न धर्म से भ्रष्ट हो जाना। और इस प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन करने वाले को तीन विशेष फल प्राप्त होते हैं(१) अवधिज्ञान की प्राप्ति। (२) मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति। (३) केवलज्ञान का प्रगट होना। इस प्रकार ये वारह भिक्षु प्रतिमाएँ साधक-जीवन की विशुद्धि के कारण और उसके दृढ़ मनोवल तथा संकल्प-शक्ति की परिचायक हैं। इन प्रतिमाओं की आराधना गौतमकुमार मुनि ने की थी। अन्य प्रतिमाएँ उपर्युक्त वारह प्रतिमाओं का उल्लेख दशाश्रुतस्कन्ध में प्राप्त होता है। किन्तु इनके अतिरिक्त अन्य प्रतिमाओं का वर्णन अन्तकृद्दशासूत्र में प्राप्त होता है; जिनकी आराधना सुकृष्णा आदि थर्माणयों ने की थी। ये प्रतिमाएँ भी भिक्षु प्रतिमाएँ कहलाती हैं किन्तु इनकी आराधना विधि में अन्ना है। १. सप्त-सप्तमिका प्रतिमा इस प्रतिमा का आगधना समय मात सप्ताह अथवा ४९ दिन है। आराधना विधि-इस प्रतिमा में प्रथम सप्ताह में प्रतिदिन एक दत्ती भोजन की और एक दत्ती पानी की ली जाती है। दूसरे सप्ताह में दो-दो दत्ती, तीसरे में तीन दत्ती। इसी प्रकार प्रति सप्ताह एक-एक दत्ती वढ़ाते हुए सातवें सप्ताह में प्रतिदिन आहार-पानी की सात-सात दत्तियाँ ली जाती हैं। आहार और पानी की दत्तियों की सम्मिलित रूप से गणना करने पर इस सप्त-सप्तमिका प्रतिमा में ग्रहण की हुई आहार-पानी की कुल संख्या १९६ होती है। अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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