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________________ (२) एकत्व वितर्क अविचार-इसमें आत्मा के परिणाम एक ध्येय में स्थिर हो जाते हैं। इसकी परिणति केवलज्ञान की प्राप्ति में होती है। (३) सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाती-यह ध्यान केवलज्ञानियों को होता है। (४) समुच्छिन्न क्रिया निवृत्ति-अयोगी केवलियों को होने वाला ध्यान। धर्मध्यान का प्रारम्भ सम्यक्त्व-प्राप्ति से हो जाता है अतः यह मोक्षमहल का प्रथम सोपान है और शुक्लध्यान है अन्तिम सोपान। आगमों में इन ध्यानों की भावनाओं, अनुप्रेक्षाओं, लक्षण आदि का भी वर्णन किया गया है। ६. व्युत्सर्ग तप व्युत्सर्ग का अभिप्राय है ममत्व-विसर्जन। इस ध्यान में काय, कषाय, उपधि, भक्त-प्रत्याख्यान आदि सभी के प्रति ममत्व का त्याग कर दिया जाता है। यह तप निर्ममत्व भाव की साधना है। इस प्रकार यह आभ्यन्तर तप कर्मनिर्जरा और आत्म-विशुद्धि के साधन हैं। इनकी आराधना से सिद्धि सुलभ हो जाती है। ___ बाह्य तप भी सिद्धि-प्राप्ति में सहायक होते हैं। उनकी आगधना से भी साधक मुक्ति का वरण कर लेता है। प्रकीर्णक तप का विशेष विवेचन अनशन तप का ही एक भेद है-प्रकीर्णक तप। यह तप अनेक प्रकार का है। इसके कई उत्तरभेद हैं। इनमें से कुछ प्रमुख तपों का यहाँ संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है१. गुणरत्नसंवत्सर तप इस तप की व्याख्या इन शब्दों में की गई हैजिस तप में गुण रूप रत्नों वाला संपूर्ण वर्ष बिताया जाय वह गुणरत्नसंवत्सर तप कहा जाता है। इस तप में ४८0 दिन यानी १६ महीने लगते हैं। जिसमें ४०७ दिन तपस्या (अनशन तप) के हैं और ७३ दिन पारणे (आहार ग्रहण) करने के हैं। आराधना विधि-उपर्युक्त १६ महीनों में से साधक प्रथम मास में एक दिन तप और दूसरे दिन पारणा (आहार ग्रहण) करता है। दूसरे महीने में बेला तप (दो दिन का उपवास) करके तीसरे दिन आहार लेता है। तीसरे मास में तीन दिन का उपवास और चौथे दिन पारणा। चौथे महीने में चार दिन की तपस्या और पाँचवें दिन पारणा। इसी प्रकार छठे महीने में छह दिन की तपस्या के बाद पारणा किया जाता है। इस तरह प्रति माह तपस्या का एक-एक दिन बढ़ाते हुए पारणा किया जाता है और सोलहवें मास में १६ दिन की तपस्या के बाद पारणा किया जाता है। अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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