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________________ यही कारण है कि गणधरों द्वारा गूंथे हुए १२ अंगसूत्र भी कहे जाते हैं। वारह अंग हैं-(१) आचारांग, (२) सूत्रकृतांग, (३) स्थानांग. (४) समवायांग, (५) भगवती-व्याख्याप्रज्ञप्ति, (६) ज्ञाताधर्मकथांग, (७) उपासकदशांग, (८) अन्तकृद्दशांग, (९) अनुत्तरौपपातिकदशा, (१०) प्रश्नव्याकरण, (११) विपाकसूत्र, और (१२) दृष्टिवाद। (यह बारहवाँ दृष्टिवाद अंग लुप्त हो चुका है।) अन्तकृद्दशा : आठवाँ अंग उपरोक्त क्रम से प्रस्तुत अन्तकृद्दशासूत्र द्वादशांगी का आठवाँ अंग या सूत्र है। जैनदर्शन में ८ का अंक कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ लिए हुए है, जैसे-सिद्धों के आठ गुण हैं। आत्मा के आठ मूल गुण हैं। मंगल भी आठ हैं। प्रमाद स्थान भी आठ हैं और कर्म भी आठ हैं; जिन्हें नष्ट कर जीव बंधन से छुटकारा पाता है। प्रस्तुत आठवें अंग में भी ऐसे साधकों का वर्णन है, जिन्होंने अपने संपूर्ण आठ कर्मों का विनाश करके अन्त में अपने लक्ष्य-मुक्ति की प्राप्ति की है। नामकरण एवं शब्दार्थ प्रस्तुत अंग का नाम अन्तकृद्दशांगसूत्र है। यह नाम चार शब्दों से मिलकर निष्पन्न हुआ है। वे शब्द हैं-(१) अन्तकृत, (२) दशा, (३) अंग, और (४) सूत्र। इन चारों शब्दों के पृथक्-पृथक् रूप से अर्थ पर विचार करने से प्रस्तुत सूत्र के नामकरण का रहस्य स्पष्ट हो जायेगा। १. अन्तकृत् प्रस्तुत अंग के नाम का यह प्रथम शब्द है-अन्तकृत्। इसका अर्थ है-अन्त करने वाले भवान्त, भव का अन्त करने वाले अथवा जन्म-मरण रूप संसार का अन्त करने वाले। जिस लक्ष्य के लिए साधना-मार्ग अपनाया जाता है, उस लक्ष्य को प्राप्त करने वाले (end-winners), संसार के सभी दुःखों का अन्त करके मुक्ति-सिद्धि प्राप्त करने वाले। प्रस्तुत सूत्र का यह प्रथम शब्द सार्थक और सटीक है, क्योंकि इसमें उन साधक एवं साधिकाओं का, उनकी साधना, तपस्या आदि का वर्णन किया गया है, जिन्होंने अपना अन्तिम लक्ष्य मुक्ति (salvation) को पाकर अपना मानव-जीवन सफल किया और अनन्त, निराबाध सुख में लीन (beatified) हो गये। २. दशा प्रस्तुत अंगसूत्र के नाम का दूसरा घटक (शब्द) 'दशा' है। ‘दशा' शब्द के कोशकारों ने अनेक अर्थ दिये हैं, जैसे-अवस्था, condition, state, degree, being आदि-आदि। नन्दीसूत्र चूर्णि (पृ. ६८) में भी दशा का अर्थ अवस्था ही दिया गया है। किन्तु यहाँ ‘दशा' शब्द का सामान्य अर्थ, अवस्था ग्रहण करना उचित नहीं लगता। आध्यात्मिक प्रसंग और मोक्ष प्राप्त करने वाले साधकों का वर्णन इस सूत्र में होने के कारण सांसारिक अवस्था से मुक्त अवस्था प्राप्त करना ही इसका अर्थ लेना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है, भोगावस्था से योगावस्था .२९८ . अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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