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एकोत्तरियाए वुड्ढीए आयंबिलाई वड्ढंती, चउत्थंतरियाई जाव आयंबिलसयं करेइ, करित्ता चउत्थं करेइ । तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं चोहसेहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसहि य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव सम्मं काएणं फासेइ जाव । आराहित्ता, जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अज्जं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता बहूहिं चउत्थेहिं जाव भावेमाणी विहरइ। तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव उवसोभेमाणी उवसोभेमाणी चिट्ठइ । तए णं तीसे महासेणकण्हाए अज्जाए अण्णया कयाइं पुव्यरत्तावरत्तकाले चिंता जहा खंदयस्स जाव अज्जचंदणं अज्जं आपुच्छइ जाव संलेहणा । कालं अणवकंखमाणी विहरइ । तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा अज्जचंदणा अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारसअंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाइं सत्तरस वासाइं परियायं पालइत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सटुिं भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए कीरइ जाव तमटुं आराहेइ । चरिम उस्सास-णीसासेहिं सिद्धा बुद्धा ।।
अट्ठ य वासा आदी, एकोत्तरियाए जाव सत्तरस ।
एसो खलु परियाओ सेणियभज्जाण णायव्यो ॥ महासेनकृष्णाः आयम्बिल वर्धमान तप सूत्र १७:
इसी प्रकार महासेनकष्णा का वर्णन भी जानना चाहिये । वह राजा श्रेणिक
की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता थी। दीक्षा ली और आर्या • २८४ .
अन्तकृद्दशा सूत्र : अष्टम वर्ग
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