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________________ सूत्र १३: तए णं तं सुदंसणं सेटिं अम्मापियरो जाहे णो संचायंति, बहूहिं आघवणाहिं जाव परूवेत्तए ।। तए णं से अम्मापियरो ताहे अकामया चेव सुदंसणं सेट्टि एवं वयासीअहासुहं देवाणुप्पिया ! तए णं से सुदंसणे सेट्ठी अम्मापिईहिं अब्भणुण्णाए समाणे ण्हाए सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता, पायविहारचारेणं रायगिहं णयरं मझं मज्झेणं णिगच्छइ, णिगच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणस्स अदूरसामंतेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं से मोग्गरपाणिजखे सुदंसणं समणोवासयं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता आसुरत्ते तं पलसहस्सणिप्फण्णं अयोमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे उल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। सूत्र १३: उस सुदर्शन सेठ को माता-पिता जब अनेक प्रकार की युक्तियों से भी नहीं समझा सके, तब माता-पिता ने अनिच्छापूर्वक इस प्रकार कहाहे पुत्र ! फिर जिस प्रकार तुम्हें सुख उपजे वैसा करो ! इस प्रकार सुदर्शन सेठ ने माता-पिता से आज्ञा प्राप्त करके स्नान किया और धर्मसभा में जाने योग्य शुद्ध वस्त्र धारण किये । फिर अपने घर से निकला और पैदल ही राजगृह नगर से चलकर मुद्गरपाणि यक्ष के यक्षायतन से न अति दूर और न अति निकट से होते हुए गुणशीलक उद्यान की ओर, जहां श्रमण भगवान महावीर विराजते थे, उधर बढ़ने लगे । सुदर्शन सेट को अपने यक्षायतन के पास से निकलते देखकर वह मुद्गरपाणि यक्ष (यक्षाविष्ट अर्जुन मालाकार) बड़ा क्रुद्ध हुआ । वह अपने . १९०. अन्तकृद्दशा सूत्र : षष्ठम वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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