________________
उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिवियं ठवेइ। ठवेत्ता, पउमावई देवी सिवियाओ पच्चोरुहइ । तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमावई देविं पुरओ कटु जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, अरहं अरिठ्ठणेमिं आयाहिणपयाहिणं करेइ । करित्ता, वंदइ णमंसइ, बंदित्ता णमंसित्ता एवं बयासीएस णं भंते ! मम अग्गमहिसी पउमावई णामं देवी इट्टा, कंता, पिया, मणुण्णा, मणामा, अभिरामा, जीवियऊसासा, हिययाणंदजणिया उंबरपुफविव दुल्लहा, सवणयाए किमंग ! पुण पासणयाए । तए णं अहं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणीभिक्वं दलयामि, पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणीभिक्खं । अहासुहं ! तए णं सा पउमावई देवी उत्तर-पुरच्छिमदिसिभागं अवक्कमइ । अवक्कमित्ता सयमेव आभरणालंकारं ओमुयइ । ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करित्ता जेणेव अरहा अरिट्टणेमि तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठणेमिं वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं प्रयासी
आलित्ते णं भंते ! पलित्ते णं भन्ते ! लोए । जाव धम्ममाइपिउं । दीक्षा महोत्सव सूत्र ११:
इसके बाद कृष्ण वासुदेव ने पद्मावती को एक विशेष पट्ट पर बिठाया और एक सौ आठ सुवर्ण आदि कलशों से स्नान कराया यावत् दीक्षा सम्बन्धी अभिषेक किया । फिर सभी प्रकार के अलंकारों से उसे विभूषित करक हजार पुरुषों द्वारा उठायी जाने वाली शिविका (पालकी) में विटाकर द्वारका नगरी के मध्य होते हुए निकले और जहां रैवतक पर्वत और सहस्राम्र उद्यान था वहां आकर पालकी नीचे रखी। पद्मावती देवी पालकी से नीचे उतरी।
. १५६ .
अन्तकृद्दशा सूत्र : पंचम वर्ग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org