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________________ - पंचम वर्ग सूत्र १: जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेण चउत्थस्स बग्गस्स अयमद्वे पण्णत्ते । पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता । तं जहापउमावई' य गोरी,२ गंधारी लक्खणा सुसीमा य । जंबबई सच्चभामा सप्पिणी- मूलसिरी मूलदत्ताय ॥ जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता । पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अद्वे पण्णत्ते ? सूत्र १ : आर्य जम्बू-हे भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्ति को प्राप्त प्रभु ने चौथे वर्ग का यह अर्थ वर्णन किया है, तो अन्तकदशा के पंचम वर्ग का क्या भाव प्रतिपादन किया है ? आर्य सुधर्मा--हे जम्बू ! इस प्रकार निश्चय ही श्रमण भगवान ने पंचम वर्ग के दस अध्ययन बताये हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- १. पद्मावती, २. गौरी, ३. गांधारी, ४. लक्ष्मणा, ५, सुसीमा देवी, ६, जाम्बवती, ७, सत्यभामा, ८. रुक्मिणी, ९. मूलश्री, १0. मूलदत्ता । आर्य जम्बू- हे भगवन् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने पंचम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं, तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? • १३० . अन्तकृद्दशा सूत्र : पंचम वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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