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________________ वेदन्भी माया । एवं (९) सच्चणेमी णवरं समुद्दविजये पिया, सिवा माया । एवं (90) दढणेमी वि । सव्ये एगगमा । चउत्थस्स वग्गस्स णिक्खेवओ । (चतुर्थ वर्ग समाप्त ) इसके बाद पूर्व में वर्णित गौतम कुमार की तरह उनके एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम “जालिकुमार'' रखा गया । जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ तव उरका विवाह पचास कन्याओं के साथ किया गया और उन्हें पचास-पचास करोड़ सोनैया आदि का प्रीतिदान मिला। संक्षेप में वर्णन इस प्रकार समझना चाहिएएक समय भगवान् अरिष्टनेमि वहाँ पधारे । उनका धर्मोपदेश सुनकर जालिकुमार को संसार से विरक्ति हो गई । माता-पिता की आज्ञा लेकर उन्होंने अर्हन्त अरिष्टनेमि के पास दीक्षा अंगीकार की । बारह अंगों का अध्ययन किया और १६ वर्ष पर्यन्त श्रमण दीक्षा पर्याय पाली। फिर गौतम कुमार की तरह इन्होंने भी संलेखना आदि करके शत्रुजय पर्वत पर एक मास का संथारा किया और सब कर्मों से मुक्त होकर सिद्ध हुए । जालिकुमार की तरह २. मयालिकुमार, ३. उवयालिकुमार , ४. पुरुषसेन कुमार, और ५. वारिसेन कुमार के वर्णन भी समझने चाहिये । ये सभी वसुदेव जी के पुत्र एवं धारिणी रानी के आत्मज थे । इसी तरह छठे प्रद्युम्न कुमार का जीवन चरित्र भी जानना चाहिए । केवल अन्तर इतना जानना चाहिए कि इनके पिता “श्रीकृष्ण'' और माता रुक्मिणी थी। ऐसे ही सातवें शाम्बकुमार का जीवन वर्णन समझना। केवल अन्तर इतना कि इनके पिता श्रीकृष्ण एवं माता जाम्बवती थी । इसी प्रकार आठवें अध्ययन में अनिरुद्ध कुमार का जीवन वर्णन समझना चाहिये, इनके पिता प्रद्युम्न कुमार और माता वैदर्भी थी । १-१० अध्ययन १२७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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