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एवं खलु अहं पोलासपुरे णयरे अइमुत्तेणं कुमारसमणेणं बालत्तणे बागरिया - तुमं णं देवाणुप्पिए ! अट्ठपुत्ते पयाइस्ससि सरिसए जाव नलकुब्बरसमाणे णो चेव णं भारहेबासे अण्णाओ अम्मयाओ तारिसए पुत्ते पयाइस्संति ।
तं णं मिच्छा ? इमं णं पच्चक्खमेव दिस्सइ भारहे बासे अण्णाओ वि अम्मयाओ खलु एरिसए जाव पुत्ते पयायाओ । तं गच्छामि णं अरहं अरिट्ठणेमं वंदामि णमंसामि, वंदित्ता णमंसित्ता इमं च णं एयारूवं वागरणं पुच्छिस्सामि त्ति कट्टु एवं संपेइ संपेहित्ता को बियपुरिसे सद्दाas सद्दावित्ता एवं वयासी - लहु करण णप्पवरं जाव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्टेवेति जहा देवाणंदा जाव पज्जुवासइ ।
सूत्र १२ :
इस प्रकार की बात सुनकर ( मुनियों के लौट जाने के पश्चात् ) देवकी के मन में इस प्रकार की विचार तरंगें उत्पन्न हुईं ।
एक बार पोलासपुर नगर में अतिमुक्त कुमार नामक श्रमण ने मेरे समक्ष बचपन में इस प्रकार भविष्यवाणी की थी कि - हे देवानुप्रिये देवकी ! तुम, एक दूसरे के पूर्णतः समान ( सरीखे ) आठ पुत्रों को जन्म दोगी, जो नलकूबर के समान होंगे । भरतक्षेत्र में दूसरी कोई माता वैसे पुत्रों को जन्म नहीं देगी ।
क्या यह भविष्यवाणी आज मिथ्या सिद्ध हुई ? क्योंकि यह प्रत्यक्ष ही दीख रहा है कि भरतक्षेत्र में अन्य माताओं ने भी सुनिश्चित रूपेण ऐसे एक समान छह सुन्दर पुत्रों को जन्म दिया है । ( मुनि की बात मिथ्या नहीं होनी चाहिए, फिर यह प्रत्यक्ष में उससे विपरीत क्यों ? विचारों की इस उथल-पुथल में देवकी ने निर्णय किया ) " ऐसी स्थिति में मैं अरिहन्त अरिष्टनेमि भगवान की सेवा में जाऊँ, उन्हें वन्दन नमस्कार करूँ, और वन्दन नमस्कार करके अतिमुक्तक मुनि के कथन के विषय में प्रभु से पूछूं” देवकी ने इस प्रकार सोचा, ऐसा सोचकर देवकी ने अपने आज्ञाकारी पुरुषों
"
अष्टम अध्ययन
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