________________
| चउत्थो उद्देसओ|
| चतुर्थ उद्देशक
LESSON FOUR
अग्राह्य-संखडि ग्रहण का निषेध
२२. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से जं पुण जाणेज्जा, मंसाइयं वा मच्छाइयं वा मंसखलं वा मच्छखल वा आहेणं वा पहेणं वा हिंगोलं वा संमेलं वा हीरमाणं पेहाए अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहुओसा बहुउदया बहुउत्तिंग-पणग-दगमट्टिय-मक्कडा-संताणगा।
बहवे तत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति, तथाइण्णा वित्ती, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणा-ऽणुप्पेहधम्माणुयोगचिंताए। से एवं णच्चा तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारिज्ज गमणाए।
२२. भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करते समय यह जान लेवे कि यहाँ आहार के साथ माँस पकाया जा रहा है या मत्स्य पकाया जा रहा है अथवा माँस छीलकर सुखाया जा रहा है या मत्स्य छीलकर सुखाया जा रहा है। आहेणविवाहोत्तर काल में नववधू के प्रवेश के उपलक्ष्य में भोज हो रहा है या पहेण-पितृगृह में वधू के पुनः प्रवेश के उपलक्ष्य में भोज हो रहा है, या मृतक-सम्बन्धी भोज हो रहा है अथवा परिजनों के सम्मानार्थ भोज (गोठ) हो रहा है। (ऐसी संखडियों (भोजों) से अन्य भिक्षाचरों को भोजन लाते हुए देखकर संयमशील भिक्षु को वहाँ भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए।) क्योंकि वहाँ जाने में अनेक जीवों की विराधना होने की सम्भावना है, जैसे किमार्ग में बहुत-से प्राणी, बहुत-सी हरियाली, बहुत-से ओसकण, बहुत-सा पानी, बहुत-से कीड़ीनगर, पाँच वर्ण की-नीलण-फूलण हैं, काई आदि निगोद के जीव हैं, सचित्त पानी से भीगी हुई मिट्टी है, मकड़ी के जाले हैं, उन सब की विराधना हो सकती है। __इसके अतिरिक्त वहाँ बहुत-से शाक्यादि-श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र, याचक (भिखारी) आदि आए हुए हैं, आ रहे हैं तथा आएँगे। चरक आदि जनता की भीड़ से संखडिस्थल अत्यन्त घिरा हुआ है; इसलिए वहाँ प्राज्ञ साधु का निर्गमन-प्रवेश का व्यवहार उचित नहीं है; क्योंकि वहाँ (नृत्य, गीत एवं वाद्य होने से) प्रज्ञावान भिक्षु की वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथारूप स्वाध्याय नहीं हो सकेगी। अतः इस प्रकार का दोष जानकर वह भिक्षु पूर्वोक्त प्रकार की पूर्व संखडि या पश्चात् संखडि में संखडि की अभिलाषा से जाने का संकल्प न करे। पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
Pindesana: Frist Chapter
WwMANTIMM
X
R
MARI
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org