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________________ actAANAINARY ROSRO900 ६ विशेष घरों में भिक्षार्थ जाने का निषेध २१. से भिक्खू वा २ से जाइं पुण कुलाइं जाणेज्जा, तं जहा-खत्तियाण वा राईण वा कु-राईण वा रायपेसियाण वा रायवंसट्ठियाण वा अंतो वा बाहिं वा गच्छंताण वा संणिविट्ठाण वा णिमंतेमाणाण वा अणिमंतेमाणाण वा असणं वा ४ लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ॥ तइओ उद्देसओ सम्मत्तो ॥ . २१. भिक्षु एवं भिक्षुणी निम्नोक्त कुलों को जाने, जैसे कि चक्रवर्ती आदि क्षत्रियों के कुल, (उनसे भिन्न) अन्य राजाओं के कुल, कु-राजाओं (छोटे राजाओं) के कुल, राज भृत्य (दण्डपाशिक) आदि के कुल, राजा के सम्बन्धियों के कुल, इन कुलों के घर से बाहर या भीतर जाते हुए, खड़े हुए या बैठे हुए, किसी के द्वारा निमन्त्रण किये जाने या न किये जाने पर, वहाँ से प्राप्त होने वाले अशनादि आहार को ग्रहण न करे। .. . CENSURE OF GOING TO CHOSEN HOUSES 21. A bhikshu or bhikshuni should know the following clansthe ruling clans like those of Chakravartis; clans of other kings; clans of minor rulers; clans of employees of kings and clans of relatives of kings. He should not accept food offered while going into or coming out of or standing in or sitting in or being invited or not invited at the houses belonging to these clans. विवेचन-सूत्र ११ में उग्र, भोग, राजन्य, क्षत्रिय आदि बारह प्रकार के कुलों से प्रासुक एवं एषणीय आहार लेने का विधान किया गया है, अब इस सूत्र में क्षत्रिय आदि कुछ कुलों से आहार लेने का सर्वथा निषेध किया गया है, इसका क्या कारण है ? वृत्तिकार इसका समाधान करते हुए कहते हैं-'एतेषां कुलेषु संपातभयान प्रवेष्टव्यम्-इन घरों में संपात-भीड़ में गिर जाने, ईर्यासमिति की विराधना होने अथवा निरर्थक असत्य भाषण के भय के कारण प्रवेश नहीं करना चाहिए। प्राचीन काल में राजाओं के अन्तःपुर में तथा रजवाड़ों में राजकीय उथल-पुथल बहुत होती थी, षड्यंत्र रचे जाते थे। कई गुप्तचर भिक्षु के वेश में राज-दरबार में, अन्तःपुर तक में घुस जाते थे। ऐसी स्थिति में साधुओं को गुप्तचर समझकर पकड़ लिया जाता या उन्हें आहार के साथ विष दिया जा सकता है ऐसी सम्भावना के कारण भी यह प्रतिबन्ध लगाया गया होगा। यह भी सम्भव है कुछ राजा और राजवंश के लोग भिक्षुओं के साथ असद्व्यवहार करते होंगे अथवा पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन ( ४९ ) Pindesana : Frist Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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