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अस्वाध्याय तीन दिन तक । बालक एवं बालिका के जन्म का अस्वाध्याय क्रमशः सात एवं आठ दिन पर्यन्त का माना जाता है।
१४. अशुचि - मल-मूत्र सामने दिखाई देने तक अस्वाध्याय है।
१५. श्मशान - श्मशान भूमि के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय माना जाता है।
१६. चन्द्र-ग्रहण-चन्द्र-ग्रहण होने पर जघन्य आठ, मध्यम बारह और उत्कृष्ट सोलह प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
१७. सूर्य ग्रहण - सूर्य ग्रहण होने पर भी क्रमशः आठ, बारह और सोलह प्रहर पर्यन्त अस्वाध्याय काल माना गया है।
१८. पतन - किसी बड़े मान्य राजा अथवा राष्ट्र- पुरुष का निधन होने पर जब तक उसका दाह-संस्कार न हो, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए अथवा जब तक दूसरा अधिकारी सत्तारूढ़ न हो, तब तक शनैः-शनैः स्वाध्याय करना चाहिए।
१९. राजव्युद्ग्रह-समीपस्थ राजाओं में परस्पर युद्ध होने पर जब तक शान्ति न हो जाए, तब तक और उसके पश्चात् भी एक दिन रात्रि स्वाध्याय नहीं करे।
२०. औदारिक शरीर - उपाश्रय के भीतर पंचेन्द्रिय जीव का वध हो जाने पर जब तक कलेवर पड़ा रहे, तब तक तथा १०० हाथ तक यदि निर्जीव कलेवर पड़ा हो तो स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
अस्वाध्याय के उपरोक्त १० कारण औदारिक शरीर-सम्बन्धी कहे गये हैं।
२१-२८. चार महोत्सव और चार महाप्रतिपदा - आषाढ़ - - पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र - पूर्णिमा ये चार महोत्सव हैं। इन पूर्णिमाओं के प्रतिपदा को महाप्रतिपदा कहते हैं। इनमें स्वाध्याय करने का निधेष है।
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२९-३२. प्रातः, सायं, मध्याह्न और अर्ध- रात्रि - प्रातः सूर्य उगने से एक घड़ी पहले तथा एक घड़ी पीछे। सूर्यास्त होने से एक घड़ी पहले तथा एक घड़ी पीछे । मध्याह्न अर्थात् दोपहर में एक घड़ी आगे और एक घड़ी पीछे एवं अर्ध- रात्रि में भी एक घड़ी आगे तथा एक घड़ी पीछे स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
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आश्विन - पूर्णिमा, पश्चात् आने वाली
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