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चतुर्थ चूला विमुक्ति : सोलहवाँ अध्ययन
आमुख
+ सोलहवें अध्ययन का नाम 'विमुक्ति' है। + विमुक्ति का सामान्यतया अर्थ होता है-बन्धनों से विशेष प्रकार से मुक्ति। बेड़ियों आदि से
विमुक्त होना द्रव्य-विमुक्ति है। किन्तु प्रस्तुत में बन्धन द्रव्यरूप नहीं, अपितु भावरूप है। इसी
प्रकार मुक्ति भी यहाँ द्रव्यरूप नहीं, कर्मक्षयरूप भाव विमुक्ति ही अभीष्ट है। + भाव-विमुक्ति साधुओं की भूमिका के अनुसार दो प्रकार की है-(१) देशतः, और (२) सर्वतः। देशतः विमुक्ति-सामान्य साधु से लेकर भवस्थ केवली तक साधुओं की होती है,
और सर्वतः विमुक्ति सिद्ध भगवान की होती है। + विमुक्ति अध्ययन में पाँच अधिकार भावना के रूप में प्रतिपादित हैं-(१) अनित्यत्व,
(२) पर्वत, (३) रूप्य, (४) भुजंग, एवं (५) समुद्र। + पाँचों अधिकारों में विविध उपमाओं, रूपकों एवं युक्तियों द्वारा राग-द्वेष, मोह, ममत्व एवं
कषाय आदि से विमुक्ति की साधना पर जोर दिया गया है। इनसे विमुक्ति होने पर ही साधक को सदा के लिए जन्म-मरणादि से रहित मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
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७.
के विमुक्ति : सोलहवाँ अध्ययन
Vimukti: Sixteenth Chapter
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