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शान्तिरूप चारित्र का नाश करता है तथा ब्रह्मचर्य का भंग करने वाला होता है तथा केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ साधु स्त्रियों के साथ की हुई पूर्व रति एवं पूर्व काम-क्रीड़ा का स्मरण न करे। यह तीसरी भावना है।
(3) The third bhaavana is—A nirgranth should not recall his indulgences in sexual activities and enjoyment with women during his pre-initiation life. The Kevali says-A nirgranth who recalls his past indulgences in sexual activities and enjoyment with women disturbs his serene conduct and serene celibacy, and falls from the serene code propagated by the Kevali. Therefore a nirgranth should abstain from recalling his past indulgences in sexual activities and enjoyments with women. This is the third bhaavana.
(४) अहावरा चउत्था भावणा-नाइमत्तपाण-भोयणभोई से निग्गंथे, णो पणीयरस-भोयणभोइ। केवली बूया-अतिमत्तपाण-भोयणभोई से निग्गंथे पणीयरसभोयणभोइ ति संतिभेया जाव भंसेज्जा। नाइमत्तपाण-भोयणभोई से निग्गंथे, णो पणीयरस भोयणभोइ ति चउत्था भावणा।
(४) इसके बाद चौथी भावना का स्वरूप इस प्रकार है-निर्ग्रन्थ प्रमाण से अधिक ॐ अतिमात्रा में आहार-पानी का सेवन नहीं करे और न ही सरस स्निग्ध-स्वादिष्ट भोजन
करे। केवली भगवान कहते हैं-जो निर्ग्रन्थ प्रमाण से अधिक (अतिमात्रा में) आहार-पानी
का सेवन करता है तथा स्निग्ध-सरस-स्वादिष्ट भोजन करता है, वह शान्ति रूप चारित्र का * नाश करने वाला, ब्रह्मचर्य को भंग करने वाला होता है तथा केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट * हो सकता है। इसलिए निर्ग्रन्थ को अति मात्रा में आहार-पानी का सेवन या सरस स्निग्ध
भोजन नहीं करना चाहिए। यह चौथी भावना है।
(4) The fourth bhaavana is—A nirgranth should neither eat too much nor nutritious, rich and tasty food. The Kevali says—A nirgranth who eats too much or nutritious, rich and tasty food disturbs his serene conduct and serene celibacy, and falls from the serene code propagated by the Kevali. Therefore a nirgranth should abstain from eating too much or nutritious, rich and tasty
food. This is the fourth bhaavana. 0 आचारांग सूत्र (भाग २)
Acharanga Sutra (Part 2)
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