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सुव्रत दिवस के विजय मुहूर्त में, हस्तोत्तर (उत्तराफाल्गुनी) नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, पूर्वगामिनी छाया होने पर, द्वितीय पौरुषी (प्रहर) के बीतने पर, निर्जल षष्ठभक्त प्रत्याख्यान के साथ एक मात्र (देवदूष्य) वस्त्र को लेकर भगवान महावीर चन्द्रप्रभा नाम की सहस्रवाहिनी शिविका में विराजमान हुए। यह शिविका देवों, मनुष्यों और असुरों द्वारा उठाई जा रही थी। अतः उनके साथ वे क्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश के बीचोंबीच-मध्य भाग में से होते हुए जहाँ ज्ञातखण्ड नामक उद्यान था, वहाँ पहुँचे। वहाँ पहुँचकर छोटी-सीहाथ-प्रमाण ऊँची भूमि पर धीरे-धीरे उस सहस्रवाहिनी चन्द्रप्रभा शिविका को रख देते हैं। तब भगवान उसमें से शनैः-शनैः नीचे उतरते हैं; और पूर्वाभिमुख होकर सिंहासन पर बैठ जाते हैं। अलंकारों को उतारते हैं।
तब तत्काल ही वैश्रमणदेव घुटने टेककर श्रमण भगवान महावीर के चरणों में झुकता है और भक्तिपूर्वक उनके उन आभरणालंकारों को हंस के समान श्वेत वस्त्र में ग्रहण कर
लेता है। ___ उसके पश्चात् भगवान ने दाहिने हाथ से दाहिनी ओर के और बाँए हाथ से बाँई ओर के केशों का पंचमुष्ठिक लोच किया। तब देवराज देवेन्द्र शक्र श्रमण भगवान महावीर के समक्ष घुटने टेककर चरणों में झुकता है और हीरे के (वज्रमय) थाल में उन केशों को ग्रहण करता है। और "भगवन् ! आपकी अनुमति है"; यों अनुज्ञा प्राप्त कर उन केशों को क्षीर समुद्र में प्रवाहित कर देता है। ___ इधर भगवान पंचमुष्टिक लोच पूर्ण करके सिद्धों को नमस्कार करते हैं; और “आज से मेरे लिए सभी पापकर्म अकरणीय हैं", यों उच्चारण करके सामायिक चारित्र अंगीकार करते हैं। उस समय देवों और मनुष्यों दोनों की परिषद् चित्रलिखित-सी स्थिर हो गई थी।
378. During that period and at that time it was the first month and first fortnight of the winter season. On the tenth day of the dark half of the month of Margashirsh the hour of the noon had passed and the shadow was on the eastern direction. On that day known as Suvrata and at that auspicious moment known as Vijaya, observing a two day fast and taking just one divine cloth Shraman Bhagavan Mahavir sat in the sahasravahini palanquin named Chandraprabha. This palanquin was carried by gods, humans and demons. Thus accompanied by all these and crossing the Kshatriya Kundapur आचारांग सूत्र (भाग २)
( ५१४ )
Acharanga Sutra (Part 2)
YMYODAY
RAMMAR
ARU
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