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________________ .. .. यह सब करने के बाद इन्द्र ने भगवान के शरीर पर शतपाक, सहस्रपाक तैलों से मालिश की, तत्पश्चात् सुगन्धित द्रव्यों से उनके शरीर पर उबटन करके शुद्ध--स्वच्छ जल से भगवान को स्नान कराया। स्नान कराने के बाद उनके शरीर पर एक लाख के मूल्य वाले तीन पट को लपेटकर साधे हुए सरस गोशीर्ष रक्त चन्दन का लेपन किया। फिर भगवान को नाक से निकलने वाली हल्की-सी श्वास-वायु से उड़ने वाला, विशिष्ट नगर के व्यावसायिक पत्तन में बना हुआ, कुशल मनुष्यों द्वारा प्रशंसित, अश्व के मुँह की लार के समान सफेद और मनोहर चतुर शिल्पाचार्यों (कारीगरों) द्वारा सोने के तार से विभूषित और हंस के समान श्वेत वस्त्रयुगल पहनाया। फिर उन्हें हार, अर्द्ध-हार, वक्षस्थल का सुन्दर आभूषण, एकावली, लटकती हुई मालाएँ, कटिसूत्र, मुकुट और रत्नों की मालाएँ पहनाईं। तत्पश्चात् भगवान को ग्रन्थिम, वेष्टिम, पूरिम और संघातिम-इन चारों प्रकार की पुष्पमालाओं से कल्पवृक्ष की भाँति सुसज्जित-अलंकृत किया। ___ अलंकृत करने के बाद इन्द्र ने दुबारा पुनः वैक्रियसमुद्घात किया और उससे तत्काल चन्द्रप्रभा नाम की एक विशाल सहस्रवाहिनी शिविका का निर्माण किया। वह शिविका ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मगर, पक्षिगण, बन्दर, हाथी, रुरु, सरभ, चमरी गाय, शार्दूलसिंह आदि जीवों तथा वनलताओं से चित्रित थी। उस पर अनेक विद्याधरों के जोड़े यन्त्रयोग से अंकित थे। इसके अतिरिक्त वह शिविका (पालखी) सहन किरणों से सुशोभित सूर्य-ज्योति के समान देदीप्यमान थी, उसका चमचमाता हुआ रूप वर्णनीय था। सहन रूपों में भी उसका आकलन नहीं किया जा सकता था, उसका तेज नेत्रों को चकाचौंध कर देने वाला था। उस शिविका में मोती और मुक्ताजाल पिरोये हुए थे। सोने के बने हुए श्रेष्ठ कन्दुकाकार (गोल) आभूषण से युक्त लटकती हुई मोतियों की माला उस पर शोभायमान हो रही थी। हार, अर्द्ध-हार आदि आभूषणों से सुशोभित थी। अत्यन्त दर्शनीय थी, उस पर पद्मलता, अशोकलता, कुन्दलता आदि तथा अन्य अनेक प्रकार की वनलताएँ चित्रित थीं। शुभ, मनोहर, कमनीय रूप वाली पंचरंगी अनेक मणियों, घण्टा एवं पताकाओं से उसका अग्रशिखर परिमण्डित था। इस प्रकार वह शिविका अपने आप में शुभ, सुन्दर और कमनीय रूप वाली, मन को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय और अति सुन्दर थी। 366. After that, Shakra, the king of gods, stops his celestial vehicle there and slowly gets down. As soon as he reaches the ground he goes into a solitary corner and performs comprehensive Vaikriya Samudghat (a process of transforming material particles into desired form. For details refer to Illustrated Kalpa Sutra, para 26). With the help of this process आचारांग सूत्र (भाग २) ( ५०६ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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