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३६०. एगा हिरण्णकोडी अट्ठेव अणूणया सयसहस्सा । सूरोदयमादीयं दिज्जइ जा पायरासु ति ॥ २ ॥
३६१. तिण्णेव य कोडिसया अट्ठासीइ च हुंति कोडीओ । असीइं च सयसहस्सा एयं संवच्छरे दिण्णं ॥ ३ ॥
३५९. श्री जिनवरेन्द्र तीर्थंकर भगवान का अभिनिष्क्रमण एक वर्ष पूर्ण होते ही होगा, अतः वे दीक्षा लेने से एक वर्ष पहले ही वर्षीदान देना प्रारम्भ कर देते हैं। प्रतिदिन सूर्योदय से उनके द्वारा अर्थ का सम्प्रदान (दान) प्रारम्भ हो जाता है ॥ १ ॥
३६०. प्रतिदिन सूर्योदय से लेकर एक प्रहर पर्यन्त, जब तक कि वे प्रातराश (नाश्ता) नहीं कर लेते, तब तक एक करोड़ आठ लाख से अन्यून ( कम नहीं) स्वर्ण - मुद्राओं का दान दिया जाता है ॥२॥
३६१ . इस प्रकार एक वर्ष में कुल ३ अरब ८८ करोड़ ८० लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान भगवान ने दिया ॥ ३ ॥
YEAR LONG CHARITY
359. He will renounce the world after one year, knowing this the Jinvarendra (Tirthankar) commences his year-long charity (a year in advance). Every morning at dawn he starts giving his wealth in charity. (1)
360. Beginning at dawn and for one prahar (three hours) till he does not take his breakfast a sum comprising a million and eight hundred thousand gold coins is given in charity every day. (2)
361. Thus in one year he donated a total of three billion eight hundred eighty million gold coins. ( 3 )
लोकांतिक देवों द्वारा उद्बोधन
३६२. वेसमणकुंडलधरा देवा लोगंतिया महिड्ढीया । बोहिंति यतित्थकरं पण्णरससु कम्मभूमीसु ॥४ ॥
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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