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________________ * * * Susham, (4) Susham-Dusham, (5) Susham, and (6) Susham-Susham. When first three phases of the current descending time cycle had already elapsed and a major part of the fourth phase had also elapsed, its end being only 75 years, 8 months and 15 days away, Bhagavan Mahavir had descended into the womb. __३४७. तओ णं समणे भगवं महावीरे हियाणुकंपएणं देवेणं ‘जीयमेयं' ति कटु जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले तस्स णं आसोयबहुलस्स तेरसीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं बासीहिं राइदिएहिं वीइकंतेहिं तेसीइमस्स राइंदियस्स परियाए वट्टमाणे दाहिणमाहणकुंडपुर-संनिवेसाओ उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसंसि नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगोत्ताए असुभाणं पोग्गलाणं अवहारं करित्ता सुभाणं पोग्गलाणं पक्खेवं करेत्ता कुच्छिंसि गब्भं साहरति। जे वि य तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिंसि गब्भे तं पि य दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायणसगोत्ताए कुच्छिंसि साहरति। ____समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था, साहरिज्जिस्सामि ति जाणइ, साहरिए मि त्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे वि जाणइ समणाउसो ! ३४७. (देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में आने के बाद) श्रमण भगवान महावीर के हित और अनुकम्पा से प्रेरित होकर देव ने 'यह जीत आचार है', ऐसा कहकर वर्षाकाल के तीसरे मास, पाँचवें पक्ष अर्थात् आश्विन कृष्णा त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, ८२ रात्रि दिन के व्यतीत होने और ८३वें दिन की रात को, दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश से उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर सन्निवेश में (आकर वहाँ देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से गर्भ को लेकर) ज्ञातवंशीय क्षत्रियों में प्रसिद्ध काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ राजा की वाशिष्ठगोत्रीय पत्नी त्रिशला (क्षत्रियाणी) महारानी के अशुभ पुद्गलों को हटाकर, उनके स्थान पर शुभ पुद्गलों का प्रक्षेपण करके उसकी कुक्षि में उस गर्भ को स्थापित किया और त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में जो गर्भ था, उसे लेकर दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश में कोडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की जालन्धर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में स्थापित किया। ___“आयुष्मन् श्रमणो ! श्रमण भगवान महावीर गर्भावास में तीन ज्ञान (मति-श्रुत-अवधि) से युक्त थे। 'मैं इस स्थान से संहरण किया जाऊँगा', यह वे जानते थे, 'मैं संहत किया जा चुका हूँ', यह भी वे जानते थे और यह भी वे जानते थे कि 'मेरा संहरण हो रहा है।" 9 भावना : पन्द्रहवाँ अध्ययन ( ४८५ ) Bhaavana : Fifteenth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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