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भावणा: पण्णरसमं अज्झयणं भावना: पन्द्रहवाँ अध्ययन
BHAAVANA: FIFTEENTH CHAPTER STIMULATION
भगवान के पंच कल्याणक नक्षत्र
३४५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था । तं जहा - हत्थुत्तराहिं चुए चइत्ता गब्धं वक्कंते, हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्धं साहरिए, हत्थुत्तराहिं जाए, हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, हत्थुत्तराहिं कसि पडिपुणे अव्वाघाए निरावरणे अनंते अणुत्तरे केवलवर - णाण - दंसणे समुप्पण्णे । साइणा भगवं परिणिव्वु ।
३४५. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पाँच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। जैसे उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्यवन हुआ, च्यवकर वे गर्भ में उत्पन्न हुए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ से गर्भान्तर में संहरण किये गए । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान का जन्म हुआ । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही मुण्डित होकर आगार (गृह) त्यागकर अनगार- धर्म में प्रव्रजित हुए । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान को सम्पूर्ण, प्रतिपूर्ण, निर्व्याघात, निरावरण, अनन्त और अनुत्तर प्रवर (श्रेष्ठ) केवलज्ञान, केवलदर्शन समुत्पन्न हुआ । स्वाति नक्षत्र में भगवान परिनिर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हुए ।
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THE FIVE AUSPICIOUS EVENTS
345. During that period at that time the five auspicious events in the life of Bhagavan Mahavir occurred when the moon was in the twelfth (Uttaraphalguni) lunar mansion. These events are: The soul that was to be Bhagavan Mahavir left the dimension of gods and descended into the womb when the moon was in Uttaraphalguni lunar mansion. The embryo was transplanted when the moon was in Uttaraphalguni lunar mansion. Bhagavan Mahavir was born when the moon was in Uttaraphalguni lunar mansion. He renounced normal mundane भावना: पन्द्रहवाँ अध्ययन
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Bhaavana: Fifteenth Chapter
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