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+ तप के लिए द्रव्य, क्षेत्रादि का विचार करना तथा तप करने की भावना करना तपोभावना
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+ सांसारिक सुख के प्रति विरक्ति होना वैराग्य-भावना है। + कर्मबन्धजनक मद्यादि पंचविध तथा अष्टविध प्रमाद का आचरण न करना अप्रमाद-भावना
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+ आत्म-स्वभाव में ही लीन होना एकाग्र-भावना है। अनित्यादि १२ भावनाएँ भी हैं। इस प्रकार ___भावनाओं का अभ्यास करना ‘भावना' के अन्तर्गत है। + भावना अध्ययन के पूर्वार्द्ध में दर्शन-भावना के सन्दर्भ में आचार-प्रवचनकर्ता परम उपकारी
भगवान महावीर का जीवन-वृत्त दिया गया है। उत्तरार्द्ध में चारित्र-भावना के सन्दर्भ में पाँच महाव्रत एवं उनके विशुद्ध परिपालन हेतु २५ भावनाओं का वर्णन है।
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आचारांग सूत्र (भाग २)
( ४७६ )
Acharanga Sutra (Part )
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