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________________ NAGAR NAGGOLICENIC TA .CHCCCC... AC. I N अण्णमण्णकिरिया सत्तिक्कः चउदसम अज्झयण अन्योन्यक्रिया-सप्तिकाः चतुर्दश अध्ययन : सप्तम सप्तिका ANYONYA-KRIYA SAPTIKA : FOURTEENTH CHAPTER : SEPTET SEVEN | RECIPROCAL SERVICE SEPTET अन्योन्यक्रिया-निषेध ___ ३४२. से भिक्खू वा २ अण्णमण्णकिरियं अज्झत्थियं संसेइयं णो तं साइए णो तं णियमे। ३४३. से अण्णमण्णे पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, णो तं साइए णो तं णियमे, सेसं तं चेव। ___ ३४४. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वदे॒हिं जाव जएज्जासि। -ति बेमि। ॥ चउदसमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ॥ बीअं चूला सम्मत्तं ॥ ३४२. साधु-साध्वी की अन्योन्यक्रिया-परस्पर पाद-प्रमार्जनादि समस्त क्रिया, जोकि परस्पर में सम्बन्धित है, कर्मसंश्लेषजननी है-(कर्मबंधन करने वाली), इसलिए साधु या साध्वी इसको मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से करने के लिए प्रेरित करे। ३४३. साधु-साध्वी (बिना कारण) परस्पर एक-दूसरे के चरणों को पोंछकर एक बार या बार-बार अच्छी तरह साफ करे तो मन से भी ऐसा न चाहे, न वचन और काया से करने की प्रेरणा करे। इस अध्ययन का शेष वर्णन तेरहवें अध्ययन में प्रतिपादित पाठों के समान जानना चाहिए। ३४४. उस साधु या साध्वी का समग्र आचार है; जिसके लिए वह समस्त प्रयोजनों, ज्ञानादि एवं पंचसमितियों से युक्त होकर सदैव अहर्निश उसके पालन में प्रयत्नशील रहे। __ -ऐसा मैं कहता हूँ। आचारांग सूत्र (भाग २) ( ४७२ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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