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________________ live th (छ) से सिया परो कार्य अण्णयरेणं विलेवणजाएणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, णो तं साइए णो तं नियमे । " (ज) से सिया परो कार्य अण्णयरेण धूवणजाएण धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा णो तं साइए णो तं नियमे । ३३६. (क) कोई गृहस्थ मुनि के शरीर को एक बार या बार-बार पोंछकर साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे, न वचन एवं काया से कराए। (ख) कोई गृहस्थ मुनि के शरीर को एक बार या बार-बार दबाए तथा विशेष रूप से मर्दन करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए। (ग) कोई गृहस्थ मुनि के शरीर पर तेल, घी आदि चुपड़े, मसले या मालिश करे तो साधु न तो उसे मन से ही चाहे और न वचन एवं काया से कराए। (घ) कोई गृहस्थ मुनि के शरीर पर लोध, कर्क, चूर्ण या वर्ण का उबटन करे, लेपन करे तो साधु न तो उसे मन से ही चाहे और न वचन एवं काया से कराए। (च) कदाचित् कोई गृहस्थ साधु के शरीर को प्रासुक शीतल जल से या उष्ण जल से प्रक्षालन करे या अच्छी तरह धोए तो साधु न तो उसे मन से चाहे और न वचन एवं काया से कराए। (छ) कोई गृहस्थ मुनि के शरीर पर किसी प्रकार के विशिष्ट विलेपन का एक बार लेप करे या बार-बार लेप करे तो साधु न तो उसे मन से चाहे और न उसे वचन एवं काया से कराए। (ज) कोई गृहस्थ मुनि के शरीर को किसी प्रकार के धूप से धूपित करे या प्रधूपित करे तो साधु न तो उसे मन से चाहे और न वचन एवं काया से कराए । CENSURE OF BODILY PARA-KRIYA 336. (a) In case some householder wipes the body of an ascetic once or many times, the ascetic should avoid that para-kriya with mind, speech and body. (b) In case some householder massages, gently or with pressure, the body of an ascetic once or many times, the ascetic should avoid that para-kriya with mind, speech and body. आचारांग सूत्र (भाग २) ( ४५६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only Acharanga Sutra (Part 2) + Love & www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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