SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 497
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रूव सत्तिक्कयं : बारसमं अज्झयणं रूप-सप्तिका : द्वादश अध्ययन : पंचम सप्तिका RUPTA SAPTIKA : TWELFTH CHAPTER : SEPTET FIVE FORM SEPTET रूप-दर्शन उत्सुकता-निषेध __३३३. से भिक्खू वा २ अहावेगइयाई रूवाइं पासइ, तं जहा-गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघाइमाणि वा कट्टकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा चित्तकम्माणि वा मणिकम्माणि वा दंतकम्माणि वा पत्तच्छेज्जकम्माणि वा विविहाणि वा वेढिमाई अण्णयराई वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं चक्खुदसणवडियाए णो अभिसंधारेज्ज गमणाए। एवं नेयव्वं जहा सद्दपडिमा सव्वा वाइत्तवज्जा रूवपडिमा वि। ॥ बारसमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३३३. साधु-साध्वी अनेक प्रकार के रूपों को देखते हैं, जैसे-गूंथे हुए पुष्पों के स्वस्तिक आदि को, वस्त्रादि से वेष्टित या निष्पन्न पुतली आदि को, जिनके अन्दर कुछ पदार्थ भरने से पुरुषाकृति बन जाती हों, उन्हें, अनेक वर्गों के संघात से निर्मित चोलकादि को, काष्ठ से निर्मित रथादि पदार्थों को, पुस्तकर्म से निर्मित पुस्तकादि को, दीवार आदि पर चित्रित चित्रादि को, विविध मणिकर्म से निर्मित स्वस्तिकादि को, हाथी दाँत आदि से निर्मित दन्तपुत्तलिका आदि को, पत्रछेदन कर्म से निर्मित विविध पत्र आदि को अथवा अन्य विविध प्रकार के वेष्टनों से निष्पन्न हुए पदार्थों को तथा इसी प्रकार के अन्य नाना पदार्थों के रूपों को। इन पदार्थों व रूपों को देखने की इच्छा से साधु-साध्वी उस ओर जाने का मन में विचार न करे। __इस प्रकार जैसे शब्द-सम्बन्धी प्रतिमा का (११वें अध्ययन में) वर्णन किया गया है, वैसे ही यहाँ चतुर्विध आतोद्यवाद्य को छोड़कर रूप-प्रतिमा के विषय में भी जानना चाहिए। CENSURE OF EAGERNESS FOR FORM 333. A bhikshu or bhikshuni sees various forms, such asswastikas made of stringed flowers; dolls made of or dressed in रूप-सप्तिका : द्वादश अध्ययन ( ४४५ ) Rupa Saptika : Twelfth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy