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शब्द-सप्तिका : एकादश अध्ययन
आमुख
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+ ग्यारहवें अध्ययन का नाम 'शब्द-सप्तिका' है।
कर्णेन्द्रिय का उपयोग शब्द-श्रवण के लिए है। नियुक्ति गाथा ३२३ में बताया है कि भिक्षु अपनी संयम-साधना को, ज्ञान-दर्शन-चारित्र को तेजस्वी एवं उन्नत बनाने हेतु कानों से शास्त्र-श्रवण करे, गुरुदेव के प्रशस्त हित-शिक्षापूर्ण वचन सुने, दीन-दुःखी व्यक्तियों की पुकार सुने, किसी के द्वारा कर्तव्य-प्रेरणा से कहे हुए वचन सुने, वीतराग प्रभु के, मुनिवरों के प्रशस्त स्तुतिपरक शब्द, स्तोत्र एवं भक्तिकाव्य सुने, अहिंसादि लक्षण-प्रधान गुण वर्णन सुने, यह तो अभीष्ट शब्द-श्रवण है। परन्तु अपनी प्रशंसा और कीर्ति के शब्द सुनकर हर्ष से उछल पड़े और निन्दा, गाली आदि के शब्द सुन रोष से उबल पड़े; इसी प्रकार वाद्य, संगीत आदि के कर्णप्रिय स्वर सुनकर आसक्ति या मोह पैदा हो और कर्कश, कर्णकटु और कठोर शब्द सुनकर द्वेष, घृणा या
अरुचि पैदा हो, यह अभीष्ट नहीं है। + इस अध्ययन में कर्ण-सुखकर मधुर शब्द सुनने की इच्छा से गमन करने, प्रेरणा या उत्कण्ठा
का निषेध किया गया है। + राग और द्वेष दोनों ही कर्मबन्ध के कारण हैं, किन्तु राग का त्याग करना बहुत कठिन है।
शब्द-सप्तिका अध्ययन में किसी भी मनोज्ञ दृष्ट, प्रिय, कर्ण सुखकर शब्द के प्रति मन में (१) इच्छा, (२) लालसा, (३) आसक्ति, (४) राग, (५) गृद्धि, (६) मोह, और (७) मूर्छा, इन सातों से दूर रहने का निर्देश होने से शब्द सप्तिका नाम है।
शब्द-सप्तिका : एकादश अध्ययन
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Shabda Saptika: Eleventh Chapter
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