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ठाण सत्तिक्कयं : अट्ठमं अज्झयणं
स्थान- सप्तिका : अष्टम अध्ययन : प्रथम सप्तिका
STHANA SAPTIKA: EIGHTH CHAPTER : SEPTET ONE PLACE SEPTET
उपयुक्त युक्त-स्थान ग्रहण -निषेध की विधि
२८६. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा ठाणं ठाइत्तए । से अणुपविसेज्जा गामं वा नगरं वा जाव रायहाणिं वा । से जं पुण ठाणं जाणेज्जा सअंडं जाव मक्कडासंताणयं तं तहप्पगारं ठाणं अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । एवं सिज्जागमेण नेयव्वं जाव उदयपसूयाइं ति ।
२८६. साधु-साध्वी यदि किसी स्थान में ठहरना चाहें तो वह पहले ग्राम, नगर यावत् राजधानी में पहुँचे। वहाँ पहुँचकर स्थान को जाने कि यह स्थान अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है ? तो उस प्रकार के स्थान को अप्रासुक एवं अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
इसी प्रकार इससे आगे का यहाँ से उदकप्रसूत कंदादि तक का स्थानैषणा सम्बन्धी वर्णन शय्यैषणा अध्ययन ( ११ आलापक सूत्र ७८-८३ ) में निरूपित वर्णन के समान जान लेना चाहिए।
PROCEDURE OF ACCEPTING AND REJECTING
286. When a bhikshu or bhikshuni wants to stay at a place he should first go to a village, city, capital city etc. Arriving there he should find if the place is infested with eggs, cobwebs etc. If it is so he should not take that dwelling, even if offered, considering it to be faulty and unacceptable.
Further details about exploring of dwellings up to aquatic bulbous roots should be taken as mentioned in Shaiyyaishana chapter (aphorisms 78-83).
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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