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________________ 3. GHC Em /A - . -. ... (५) अहावरा पंचमा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-'अहं च खलु अप्पणो अट्ठाए उग्गहं ओगिहिस्सामि, णो दोण्हं, णो तिण्हं, णो चउण्हं, णो पंचण्डं।' पंचमा पडिमा। (६) अहावरा छट्ठा पडिमा-से भिक्खू वा २ जस्सेव उग्गहे उवल्लिएज्जा, जे तत्थ अहासमण्णागए तं जहा-इक्कडे वा जाव पलाले वा, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा णेसज्जिओ वा विहरेज्जा। छट्ठा पडिमा। (७) अहावरा सत्तमा पडिमा-से भिक्खू वा २ अहासंथडमेव, उग्गहं जाएज्जा, तं जहा-पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुओ वा णेसज्जिओ वा विहरेज्जा। सत्तमा पडिमा। ___ इच्चेतासिं सत्तण्हं पडिमाणं अण्णतरि जहा पिंडेसणाए। २८४. साधु-साध्वी धर्मशाला आदि स्थानों में पहले बताई गई विधिपूर्वक अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण करके रहे। वहाँ कोई अप्रीतिजनक प्रतिकूल कार्य न करे तथा अवगृहीत स्थानों में गृहस्थ तथा गृहस्थ-पुत्र आदि के संसर्ग से सम्बन्धित पहले कहे गये स्थान-सम्बन्धी दोषों का परित्याग करके निवास करे। ___ आगे कही जाने वाली इन सात प्रतिमाओं के माध्यम से भिक्षु अवग्रह ग्रहण करे (१) पहली प्रतिमा-धर्मशाला आदि स्थानों की परिस्थिति का सम्यक् विचार करके जितने क्षेत्र व जितने काल के लिए वहाँ के स्वामी की आज्ञा हो, उतने काल तक वहाँ ठहरूँगा। यह पहली प्रतिमा है। (२) दूसरी प्रतिमा-जिस भिक्षु को इस प्रकार का अभिग्रह होता है कि मैं अन्य भिक्षुओं के लिए अवग्रह की याचना करूँगा और उन्हीं भिक्षुओं के द्वारा याचित उपाश्रय में निवास करूँगा। यह दूसरी प्रतिमा है। (३) तीसरी प्रतिमा-दूसरे भिक्षुओं के लिए अवग्रह की याचना करूँगा, परन्तु दूसरे भिक्षुओं के द्वारा याचना किये हुए स्थानों में नहीं ठहरूँगा। यह तीसरी प्रतिमा है। (४) चौथी प्रतिमा-किसी भिक्षु को ऐसी प्रतिज्ञा होती है कि मैं दूसरे भिक्षुओं के लिए अवग्रह की याचना नहीं करूँगा, किन्तु दूसरे साधुओं द्वारा याचना किये हुए स्थान में निवास करूँगा। यह चौथी प्रतिमा है। (५) पाँचवीं प्रतिमा-कोई भिक्षु ऐसी प्रतिज्ञा धारण करता है कि मैं केवल अपने लिए ही अवग्रह की याचना करूँगा, किन्तु अन्य दो, तीन, चार और पाँच साधुओं के लिए याचना नहीं करूँगा। यह पाँचवीं प्रतिमा है। आचारांग सूत्र (भाग २) ( ३८८ ) Post शश E OTaary Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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