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२७३. उक्त स्थान के अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त हो जाने पर साधु यह ध्यान रखे कि वहाँ (ठहरे हुए) शाक्यादि श्रमण ब्राह्मणों के दण्ड, छत्र यावत् चर्मच्छेदनक आदि उपकरण पड़े हों तो उन्हें वह भीतर से बाहर न निकाले और न ही बाहर से अन्दर रखे तथा किसी सोए हुए श्रमण या ब्राह्मण को न जगाए। उनके साथ किंचित् मात्र भी अप्रीतिजनक या प्रतिकूल व्यवहार न करे, जिससे उनके हृदय को आघात पहुंचे।
273. After getting permission to stay at the place the ascetic should take care not to put out or bring in staff, umbrella, nailcutter and other equipment belonging to Buddhist monks, Brahmins etc. (staying there) if lying there. He should also not awake any Shraman or Brahmin sleeping there. He should not in any way behave unpleasantly with them so as to hurt their feelings.
आम्र आदि ग्रहण विधि
२७४. से भिक्खू वा २ अभिकंज्ज्जा अंबवणं उवागच्छित्तए। जे तत्थ ईसरे जे तत्थ समाहिट्ठाए ते उग्गहं अणुजाणावेज्जा-कामं खलु जाव विहरिस्सामो।
से किं पुण तत्थ उग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्जा अंबं भोत्तए वा से जं पुण अंबं जाणेज्जा सअंडं जाव स संताणगं तहप्पगारं अंबं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा।
२७४. कोई साधु-साध्वी आम के वन (बगीचे) में ठहरना चाहे तो उस आम्रवन का जो स्वामी या अधिष्ठाता (नियुक्त अधिकारी) हो, उनसे अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त करते हुए कहे कि “आयुष्मन् ! मैं यहाँ ठहरना चाहता हूँ। आपकी इच्छा हो उतने समय व
उतने नियत क्षेत्र में हम इस आम्रवन में ठहरेंगे, इसी बीच हमारे समागत साधर्मिक भी : आयेंगे तो इसी नियम का अनुसरण करेंगे। अवधि पूर्ण होने के पश्चात् हम लोग यहाँ से विहार कर जायेंगे।"
उस आम्रवन में अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करके ठहरने पर यदि साधु आम खाना या उसका रस पीना चाहता है, तो वहाँ के आम यदि अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हों तो - उस प्रकार के आम्रफलों को अप्रासुक एवं अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे।
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अवग्रह प्रतिमा : सप्तम अध्ययन
( ३८१ )
Avagraha Pratima : Seventh Chapter
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