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से सेवं वदंतस्स परो असणं वा ४ उवकरित्ता उवक्खडित्ता सपाणं सभोयणं पडिग्गहगं दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा ।
२५२. कोई गृहस्वामी साधु से इस प्रकार कहे - " आयुष्मन् श्रमण ! आप मुहूर्त्तपर्यन्त ठहरिए। जब तक हम अशन आदि चतुर्विध आहार जुटा लेंगे या तैयार कर लेंगे, तब हम आपको पानी और भोजन से भरकर पात्र देंगे, क्योंकि साधु को खाली पात्र देना अच्छा और उचित नहीं लगता।" ऐसा सुनकर साधु उस गृहस्थ से कह दे - " आयुष्मन् गृहस्थ या आयुष्मती बहन ! मुझे आधाकर्मी चतुर्विध आहार खाना या पीना नहीं कल्पता है । इसलिए तुम आहार की सामग्री मत जुटाओ, आहार तैयार मत करो। यदि मुझे पात्र देना चाहते हो तो ऐसे ही दे दो ।"
इस प्रकार मना करने पर भी यदि गृहस्थ चतुर्विध आहार की सामग्री जुटाकर अथवा आहार तैयार करके पानी और भोजन भरकर साधु को वह पात्र देने लगे, तो पात्र को अप्राक और अनेषणीय समझकर ग्रहण नहीं करे ।
252. When some householder says to the ascetic — “Long lived Shraman! Please wait for sometime while I arrange for or prepare four types of food. After that I will give the pot filled with food and water because it is not good or proper to give an empty pot to an ascetic." On hearing these words the ascetic should at once tell-"Long lived householder or sister! I am not allowed to eat or drink aadhakarmi (specifically prepared for an ascetic) food. Please do not arrange for prepare food. If you want to give please give the pot as it is."
Even after this warning by the ascetic if the householder proceeds to arrange for or prepare four types of food and offers a pot filled with food and water, the ascetic should refuse to take it considering it to be faulty and unacceptable.
विवेचन - वस्त्रैषणा की भाँति यहाँ पात्रैषणा में भी निम्न छह विकल्पों की ओर संकेत किया गया है - (१) गृहस्थ साधु को थोड़ी देर बाद आकर पात्र ले जाने का कहे । (२) पात्र को तेल, घी आदि स्निग्ध पदार्थ लगाकर । (३) पात्र पर स्नानीय सुगन्धित पदार्थ रगड़कर या मलकर दे । (४) ठण्डे या गर्म प्रासुक जल से धोकर देवे । ( ५ ) पात्र में रखे कंद आदि निकालकर उसे साफ कर देवे। (६) आहार-पानी तैयार करवाकर पात्र में उनसे भरकर साधु को देना चाहे । " इन सब स्थितियों में पात्र अनेषणीय एवं अग्राह्य माना गया है।
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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