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The details about these four pratimas should be taken as those mentioned in the Pindaishana chapter.
विवेचन- 'संगइयं' तथा 'वेजयंतियं' की व्याख्या -
चूर्णिकार के मतानुसार - संगइयं का अर्थ है दो या तीन पात्रों का गृहस्थ बारी-बारी से उपयोग करता है, साधु के द्वारा याचना करने पर उनमें से एक देता है तो ऐसे ( स्वांगिक) पात्र के लेने में प्रवचन दोष नहीं है । वेजयंतियं - जिस पात्र में भोजन करके राजा आदि के उत्सव या मृत्यु- कृत्य पर खाद्य को भूनकर या वैसे ही रखकर छोड़ दिया जाता है, वह पात्र । (आचारांग चूर्णि मू. पा. टि., पृ. २१५)
वृत्तिकार ने 'संगइयं' का अर्थ किया है - दाता द्वारा उस पात्र में प्रायः स्वयं भोजन किया गया हो, वह स्वांगिक पात्र । 'वेजयंतियं' का अर्थ है - दो-तीन पात्रों में बारी-बारी से भोजन किया जा रहा हो, वह पात्र । ( आचारांग वृत्ति, पत्रांक ३९९)
Elaboration-Meanings of sangaiyam and vejayantiyam-
According
to the commentator
(Churni)-Sangaiyam-a
householder generally uses two or three pots one after another. When an ascetic begs for a pot he gives one of these. There is no fault involved in taking such used pot. Vejayantiyam-the pot in which food is placed after roasting on the occasion of some royal festival or ceremony. (Acharanga Churni, p. 215)
According to the commentator (Vritti)-Sangaiyam-a pot in which the donor often eats. Vejayantiyam-a pot out of two-three pots in which food is eaten one after another. (Acharanga Vritti, leaf 399)
अनेषणीय पात्र ग्रहण निषेध
२५०. से णं एयाए एसणाए एसमाणं पासित्ता परो वएज्जा आउसंतो समणा ! एज्जासि तुमं मासेण वा जहा वत्थेसणाए ।
२५०. साधु को इस पात्रैषणा के साथ पात्र गवेषणा करते देखकर यदि कोई गृहस्थ कहे कि “आयुष्मन् श्रमण ! तुम अभी तो जाओ, एक मास पश्चात् यावत् कल या परसों तक लौटकर आना " शेष सारा वर्णन वस्त्रैषणा अध्ययन (सूत्र २१८ ) में जिस प्रकार है, उसी प्रकार जानना ।
आचारांग सूत्र (भाग २)
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AY XIV
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Acharanga Sutra (Part 2)
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