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________________ (२) अहावरा दोच्चा पडिमा से भिक्खू वा २ पेहाए पायं जाएज्जा, तं जहागाहावई वा जाव कम्मकरी वा, से पुव्वामेव आलोएज्जा, आउसो ! ति वा, दाहिसि मे एतो अण्णयरं पायं, तं जहा-लाउयपायं वा ३, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा। दोच्चा पडिमा। __(३) अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा २ से जं पुण पायं जाणेज्जा-संगइयं वा वेजयंतियं वा, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाव पडिगाहेज्जा। तच्चा पडिमा। (४) अहावरा चउत्था पडिमा से भिक्खू वा २ उज्झियधम्मियं पायं जाएज्जा जं चऽण्णे बहवे समण-माहण जाव वणीमगा णावकंखंति, तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा। चउत्था पडिमा। इच्चेइयाणं चउण्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं जहा पिण्डेसणाए। २४९. साधु को दोषों के आयतनों (स्थानों) का परित्याग करके पात्र ग्रहण करना चाहिए। साधु को चार प्रतिमापूर्वक पात्रैषणा करनी चाहिए (१) पहली प्रतिमा-साधु-साध्वी पात्र का नाम लेकर के उसकी याचना करे, जैसे कि । तुम्बे का पात्र, लकड़ी का पात्र या मिट्टी का पात्र; उस प्रकार के पात्र की स्वयं याचना करे या गृहस्थ स्वयं दे रहा हो तो प्रासुक और एषणीय होने पर उसे ग्रहण करे। यह पहली प्रतिमा है। (२) दूसरी प्रतिमा-वह साधु-साध्वी पात्रों को देखकर याचना करे। जैसे कि गृहपति यावत् कर्मचारिणी से पात्र देखकर पहले ही कहे-“आयुष्मन् गृहस्थ ! क्या मुझे इन पात्रों में से एक पात्र दोगे? जैसे कि तुम्बा, काष्ठ या मिट्टी का पात्र।" इस प्रकार के पात्र की स्वयं याचना करे या गृहस्थ दे तो प्रासुक एवं एषणीय जानकर ग्रहण करे। यह दूसरी प्रतिमा है। (३) तीसरी प्रतिमा-साधु-साध्वी ऐसे पात्रों की याचना करे, जिसमें गृहस्थ ने भोजन किया हो या ऐसे दो-तीन पात्र जिनमें गृहस्थ ने खाद्य पदार्थ रखे हों, वह पात्र मिलने पर ग्रहण करे। यह तीसरी प्रतिमा है। (४) चौथी प्रतिमा-जो गृहस्थ के लिए फेंकने योग्य हो अथवा जिस पात्र को शाक्य भिक्षु, ब्राह्मण यावत् भिखारी तक भी लेना नहीं चाहते हैं, उस प्रकार के पात्र की गृहस्थ से स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो ग्रहण करे। यह चौथी प्रतिमा है। जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में वर्णन है, उसी प्रकार शेष वर्णन जाने। आचारांग सूत्र (भाग २) ( ३५४ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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