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पाएसणा : छ8 अज्झयणं
पात्रैषणा : षष्ठ अध्ययन PAATRAISHANA : SIXTH CHAPTER
SEARCH FOR POTS
| पढमो उद्देसओ
प्रथम उद्देशक
LESSON ONE
पात्र के प्रकार एवं मर्यादा
२४३. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा पायं एसित्तए, से जं पुण पायं जाणेज्जा, तं जहा-लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा, तहप्पगारं पायं जे णिग्गंथे तरुणे जाव थिरसंघयणे से एगं पायं धारेज्जा, णो बिइयं।
२४३. संयमी साधु-साध्वी यदि पात्र की एषणा करना चाहें तो पात्रों के सम्बन्ध में जानें, जैसे कि-तुम्बे का पात्र, लकड़ी का पात्र और मिट्टी का पात्र। इन तीनों प्रकार के पात्रों को वह ग्रहण कर सकता है। उक्त पात्र ग्रहण करने वाला निर्ग्रन्थ यदि तरुण, बलिष्ठ, स्वस्थ और स्थिरसंहनन वाला है, तो वह तीनो में से कोई एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं।
TYPES AND LIMITATIONS OF POTS
243. When a disciplined bhikshu or bhikshuni wants to explore for pots he should first know this about pots-gourd-pot, wooden pot and earthen pot. He can accept these three types of pots. An ascetic who is young, strong, healthy and of sturdy constitution, should have only one pot, not more. ____ विवेचन-उक्त सूत्रों में साधु को आहार के लिए तीन प्रकार के पात्र रखने का विधान किया है, किन्त सत्र के उत्तरार्ध में कहा है-यदि साध तरुण व बलवान हो तो एक ही पात्र रखें. दूसरा नहीं। वृत्तिकार ने स्पष्ट किया है-“यह विधान जिनकल्पिक श्रमण या अभिग्रहधारी मुनि के लिए हो सकता है। स्थविरकल्पी साधु के लिए तीन पात्र का विधान है।" (वृत्ति पत्रांक ३९९)
निर्ग्रन्थ श्रमणों के लिए जहाँ भगवान महावीर ने लकड़ी के, तुम्बे के और मिट्टी के पात्र रखने का विधान किया है, वहाँ शाक्य-श्रमणों के लिए तथागत बुद्ध ने लकड़ी के पात्र का निषेध कर लोहे का और मिट्टी का पात्र रखने का विधान किया है।
पात्रैषणा : षष्ठ अध्ययन
( ३४७ )
Paatraishana : Sixth Chapter
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