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229. ‘I do not have new cloth' thinking thus a bhikshu or bhikshuni should not wash his old and dirty cloth with cold or hot, little or much uncontaminated water once or many times.
२३०. से भिक्खू वा २ ' दुब्भिगंधे मे वत्थे' त्ति कट्टु णो बहुदेसिएण सिणाणेण वा तव सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा आलावओ ।
२३०. ‘मेरा वस्त्र दुर्गन्धमय है' यों सोचकर विभूषा की दृष्टि से उसे सुगन्धित द्रव्य आदि से आघर्षित-प्रघर्षित न करे, न ही शीतल या उष्ण प्रासुक जल से उसे धोए। यह आलापक भी पूर्ववत् समझना चाहिए।
230. ‘My cloth has bad smell' thinking thus and to make it attractive a bhikshu or bhikshuni should neither rub or apply perfumes or fragrant substances nor wash his cloth with cold or hot water as mentioned above.
वस्त्र सुखाने का विधि-निषेध
२३१. से भिक्खू वा २ अभिकंखिज्जा वत्थं आयावित्तए वा पयावित्तए वा, तहप्पगारं वत्थं णो अणंतरहियाए पुढवीए णो ससणिद्धाए जाव संताणए आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा ।
२३१. साधु-साध्वी वस्त्र को धूप में सुखाना चाहे तो वह सचित्त पृथ्वी पर, गीली पृथ्वी पर, जिसमें घुन या दीमक लगी हो ऐसी लकड़ी पर, प्राणी, अण्डे, बीज मकड़ी के जाले आदि जीव वाले स्थान में न सुखाए ।
PROCEDURE OF DRYING CLOTHES
231. If a bhikshu or bhikshuni wants to dry clothes in sun he should avoid spreading them on sachit (infested with living organisms) ground, wet ground, wood infested with worms or termites, a place filled with insects, their eggs, seeds, cobwebs or other such infested places.
२३२. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं थूणंसि वा गिहेलुगंसि वा उसुयालंसि वा कामजलंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाते दुब्वद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयावेज्ज णो
यावज्ज वा ।
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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