________________
२१९. साधु के इस प्रकार कहने पर भी यदि वह गृहस्थ यों कहे कि-"आयुष्मन् श्रमण ! अभी तो तुम जाओ। थोड़ी देर बाद आना, हम तुम्हें एक वस्त्र दे देंगे।" इस पर वह मुनि उस गृहस्थ से कहे-"आयुष्मन् गृहस्थ अथवा बहन ! मेरे लिए इस प्रकार का संकेतपूर्वक वचन (संगार वचन-वायदा) स्वीकार करना नहीं कल्पता है। यदि मुझे देना चाहते हो तो इसी समय दे दो।"
219. Even after this if the householder tells—“Long lived Shraman ! Please go now and come after sometime when I will give you a cloth.” On hearing these words the ascetic should thoughtfully reply—“Long lived householder or sister ! It is not proper for me to accept such promise. If you want to give please give the cloth now.”
२२०. से सेवं वयंतं परो णेया वएज्जा-आउसो ! ति वा, भगिणी ! ति वा, आहरेयं वत्थं समणस्स दाहामो, अवियाई वयं पच्छा वि अप्पणो सयट्ठाए पाणाइं ४ समारंभ समुद्दिस्स जाव चेइस्सामो। एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म तहप्पगारं वत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा।
२२०. साधु के इस प्रकार कहने पर यदि वह गृह-स्वामी (नेता) गृहस्थ घर के किसी सदस्य (बहन आदि) को बुलाकर यों कहे कि “आयुष्मन् या बहन ! वह वस्त्र लाओ, हम उसे श्रमण को देंगे। हम तो अपने लिए बाद में भी प्राणियों आदि का समारम्भ करके बनवा लेंगे।" गृहस्थ के इस प्रकार के शब्द सुनकर पश्चात्कर्म लगने का अनुमान करके वस्त्र को अप्रासुक एवं अनेषणीय जानकर भिक्षु ग्रहण नहीं करे।
220. At these words from the ascetic if the householder tells to some member of the family (sister etc.)—“Long lived brother or sister ! Please fetch that cloth, I will give it to the ascetic. For my use I will once again get another cloth made by causing harm to beings.” On hearing these words the ascetic should think of the involved faults like pashchatkarma (consequent faults) and refuse to take it considering it to be faulty and unacceptable.
२२१. सिया णं परो णेया वएज्जा-आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, आहर एवं वत्थं सिणाणेण वा जाव आघंसित्ता वा पघंसित्ता वा समणस्स णं दाहामो। एयप्पगारं
:
+
वस्त्रैषणा : पंचम अध्ययन
(३२७ )
Vastraishana : Fifth Chapter
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org