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"रत्तं' के विषय में समाधान-भगवान महावीर के शासन के साधु-साध्वी रंगीन वस्त्र ग्रहण नहीं करते, किन्तु भगवान अजितनाथ (द्वितीय तीर्थंकर) से भगवान पार्श्वनाथ (२३वें तीर्थंकर) तक के शासन के साधु-साध्वी पाँचों रंगों के वस्त्र धारण कर सकते थे। यह पाठ तीनों काल के साधुओं की दृष्टि से लगता है। 'रत्त' का एक अर्थ यह भी सम्भव है कि तुरन्त उड़ने वाले रंग, इत्र या चन्दन । के चूर्ण या केसर आदि किसी पदार्थ से सुगन्धित करते समय जल्दी छूट जाने वाले रंग से स्वाभाविक रूप से रँगा हुआ वस्त्र। (अर्थागम प्रथम खण्ड, आचा. द्वि. श्रुत., पृ. १३०)
Elaboration—This aphorism advises to avoid the subsidiary faults. Taking cloth that is processed (bought, washed, dyed etc.) specifically for ascetics is proscribed. However, if that is already used it can be taken.
According to the preceding aphorism any cloth made specifically for ascetics is not to be taken under any condition. However, if it has been bought for ascetics and then other processes have been performed it is believed to be acceptable if it is purushantarakrit. (Hindi Tika by Acharya Shri Atmaramji M., p. 1184)
Clarification about ‘rattam’–The ascetics of the religious order of Bhagavan Mahavir do not use coloured clothes but those of the religious orders of the second (Bhagavan Ajit Nath) to the twenty third (Bhagavan Parshva Nath) Tirthankars could wear clothes of five colours. This reading of the text appears to be for ascetics of all the three periods. Another meaning of ratta could be 'vanishing colour'. A cloth naturally coloured by vanishing colour of a perfume, sandalwood powder, saffron or other such material. (Arthagama first part, Acharanga second part, p. 130)
२१५. से भिक्खू वा २ से जाइं पुण वत्थाइं जाणेज्जा विरूवरूवाइं भहद्धणमुल्लाइं, तं जहा-आईणगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमियाणि वा दुगुल्लाणि वा पट्टाणि वा मलयाणि वा पन्नुण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फालियाणि वा कोयवाणि वा कंबलगाणि वा पावाराणि वा, अण्णयराणि वा तहप्पगाराइं वत्थाई महद्धणमोल्लाई लाभे संते णो पडिगाहेज्जा।
२१५. संयमशील साधु-साध्वी महाधन से प्राप्त होने वाले ऐसे मूल्यवान नाना प्रकार के वस्त्रों के सम्बन्ध में जाने, जैसे कि-आजिनक-(चूहे आदि के चर्म से बने हुए)। वस्त्रैषणा : पंचम अध्ययन
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Vastraishana : Fifth Chapter
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