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औद्देशिक आदि दोषयुक्त वस्त्रैषणा का निषेध
२१३. से भिक्खू वा २ से जं पुण वत्थं जाणेज्जा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई। जहा पिंडेसणाए भाणियव्यं। एवं बहवे साहम्मिया, एगं साहम्मिणिं, बहवे साहम्मिणीओ, बहवे समण-माहण तहेव पुरिसंतरकडं जहा पिंडेसणाए। __२१३. साधु-साध्वी को वस्त्र के विषय में यह जानना चाहिए कि त्यागी निर्ग्रन्थ साधु को देने की प्रतिज्ञा (संकल्प) से कोई भावुक गृहस्थ किसी एक साधर्मिक साधु या साध्वी का उद्देश्य कर, या अनेक साधु-साध्वियों के लिए प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ करके (तैयार कराया हुआ) वस्त्र पुरुषान्तरकृत हो या न हो, उस वस्त्र को
अप्रासुक और अनेषणीय समझकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। ___ जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में एक साधर्मिकगत आहार-विषयक वर्णन किया गया है उसी प्रकार यहाँ वस्त्र-विषयक वर्णन कहना चाहिए। CENSURE OF FAULTY CLOTHES
213. A bhikshu or bhikshuni should find about clothes if some devout householder has brought clothes prepared by a process involving violence to prani (beings), bhoot (organisms), jiva (souls), and sattva (entities), specifically with the purpose of giving it to some co-religionist ascetic or ascetics. If it is so, considering it to be faulty and unacceptable, he should not take it, when offered, irrespective of its being purushantarakrit or not.
The details about food prepared for co-religionist mentioned in the chapter Pindaishana should be repeated here adapting it for clothes.
विवेचनइस सूत्र में साधु-साध्वी के उद्देश्य से बनाया गया आधाकर्म दोषयुक्त वस्त्र ग्रहण का सर्वथा निषेध है चाहे वह पुरुषान्तरकृत हो या न हो। यदि वह वस्त्र शाक्य आदि श्रमण-ब्राह्मणों के लिए बनाया गया हो, तो पुरुषान्तरकृत होने पर दाता द्वारा काम में लेने के बाद साधु-साध्वी उस वस्त्र को ग्रहण कर सकते हैं। ___ वस्त्र ग्रहण करने या न करने की सम्पूर्ण विधि पिंडैषणा अध्ययन के अनुसार ही समझना चाहिए।
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वस्त्रैषणा : पंचम अध्ययन
( ३१५ )
Vastraishana : Fifth Chapter
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