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or the place of stay, which is free of eggs of two sensed beings, creatures, seeds, vegetation, dew drops, sachit (contaminated with living organism) water, and also ants, mould, wet sand, mud, cobwebs or anthills, and there he should pick out the contaminated portion and clean the mixed food before carefully eating it.
If he or she is unable to eat or drink that food, it should be taken to a desolate place. There he/she should look for a spot that is free of living organisms, such as a fumigated spot, heap of bones, heap of iron scrap, heap of hay or heap of dried cow-dung or any other faultless spot. He/She should then properly inspect that spot, clean it well with ascetic-broom, and then dispose that food carefully at that spot.
विवेचन-भिक्षा में जीवादि सहित सदोष आहार मिलने पर उसके उपयोग के विषय में यहाँ मार्गदर्शन किया गया है।
विशेष शब्दों के अर्थ-आहच्च-चूर्णिकार ने इसके चार अर्थ किये हैं-(१) सहसा ग्रहण कर लेने पर, (२) कदाचित् कभी ग्रहण कर लें तो, (३) देने वाले की भूल से, तथा (४) ग्रहण करने वाले की भूल से आहार आ गया हो तो। ___ अप्रासुक-अनेषणीय-आहार-शुद्धि के अर्थ में ये दो शब्द महत्त्वपूर्ण हैं। अप्रासुक का अर्थ हैजो जीव सहित सचित्त हो। अनेषणीय का अर्थ है-गवेषणैषणा, ग्रहणैषणा तथा ग्रासैषणा से सम्बन्धित दोषों सहित हो। जीवरहित (अचित्त) तथा भिक्षाचरी के दोषों से मुक्त आहार प्रासुक और एषणीय-ग्रहण करने योग्य होता है। आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने संस्कृत टीका का संदर्भ देते हुए अपनी व्याख्या में कहा है-सामान्य स्थिति में अप्रासुक व अनेषणीय आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। किन्तु विशेष अपवादिक स्थिति आने पर तो वैसा सचित्त-संसक्त आहार ग्रहण करके उससे जीवादि को यतनापूर्वक दूर करके तटस्थ-वृत्ति से आहार का उपयोग कर लेवें। यदि जीवादि को अलग करना संभव नहीं होता हो तो उसे एकान्त निर्दोष स्थान पर परठ देवें। ___ अपवाद स्थिति के विषय में बताया है जैसे-योग्य आहार दुर्लभ हो, दुर्भिक्ष आदि का समय हो तथा शरीर रुग्ण या अशक्त हो, ऐसी अपवादिक स्थिति आने पर सदोष आहार भी लिया जा सकता है। (आचार्य श्री आत्माराम जी म. कृत हिन्दी टीका, भाग २, पृ. ७४५)
भिक्षाचरी के बयालीस दोषों का वर्णन अध्ययन के अन्त में देखें। आचारांग सूत्र (भाग २)
Acharanga Sutra (Part 2) GEON
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